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व्यक्तित्व की झांकी : ३१
' -वही बुद्धि सराहने याग्य है, जो धर्म के आचरण में लगे, मुक्ति का मार्ग ढूंढ़े। वह बुद्धि व्यर्थ है जिससे बन्धन बढ़े। ___ सन्त की अमर वाणी आज के बुद्धिमान् को चुनौती दे रही है। ३. रूढ़िवाद पर प्रहार भीखणजी का विवाह हो चुका था। एक बार वे ससुराल गए। भोजन का समय हुआ। खाने की थालियां परोसी गईं। खाना शुरू नहीं हुआ, उसके पहले ही गालियां गायी जाने लगीं। दामाद जब ससुर के घर खाना खाता है तब स्त्रियां उसे गालियों के गीत सुनाती हैं, यह मारवाड़ की चिर-प्रचलित प्रथा है। कुलवधुओं ने गाया-'ओ कुण कालो जी काबरो।' भीखणजी का साला लंगड़ा था। उन्होंने व्यंग्य की भाषा में कहा- 'जहां अन्धे और लंगड़े को अच्छा और अच्छों को अन्धा और लंगड़ा बताया जाता है, वहां का भोजन किया जाए? थाली परोसी ही रही, भीखणजी बिना खाये उठ खड़े हुए। रूढ़िवाद उन्हें अपने बाहुपाश में जकड़ नहीं सका। ४. अन्धविश्वास का मर्मोद्घाटन दूसरे प्रान्तों में 'मारवाड़ी' का अर्थ है राजस्थानी। किन्तु राजस्थान में 'मारवाड़ी' का अर्थ जोधपुर राज्य का वासी है। इस राज्य के एक प्रदेश का नाम कांठा है। वहां एक छोटा-सा कस्बा है कंटालिया। वहां किसी के घर चोरी हो गई। चोर का पता नहीं चला, तब उसने बोर नदी से एक कुम्हार को बुला भेजा। वह अन्धा था। फिर भी चोरी का भेद जानने के लिए लोग उसे बुलाते थे। ‘उसके मुंह से देवता बोलता है', इस रूप में उसने प्रसिद्धि पा ली थी। कुम्हार आया और भीखणजी से पूछा-'चोरी का संदेह किस पर है? भीखणजी उसकी ठग-विद्या की अन्त्येष्टि करना चाहते ही थे। इस अवसर का लाभ उठाकर उन्होंने कहा- 'भाई! सन्देह तो 'मजने' पर है। रात गई और कुम्हार अखाड़े में आया। लोग इकट्ठे हो गए। उसने देवता को अपने शरीर में बुलाया। शरीर कांप उठा। ‘डाल दे, डाल दे' कह कर वह चिल्लाया। उसकी चिल्ल-पों से वातावरण में एक
१. भिक्खु दृष्टान्त, ११२ पृ. ४७ २. वही, १०५, पृ. ४५
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