SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका : २५ ६. लेकिन जिस प्रकार लौकिक राजा के कानून में अपराधी अज्ञान के कारण दण्ड से बचता नहीं है, वही हाल अलौकिक राजा के नियमों का भी है। ७. मैं छोटे-से-छोटे सजीव प्राणी को मारने के उतना ही विरुद्ध हैं, जितना लड़ाई के। किन्तु मैं निरन्तर ऐसे जीवों के प्राण इस आशा में लिये चला जाता हूं कि किसी दिन मुझमें यह योग्यता आ जाएगी कि मुझे यह हत्या न करनी पड़े। यह सब होते रहने पर भी अहिंसा का हिमायती होने का मेरा दावा सही होने के लिए यह परमावश्यक है कि मैं इसके लिए सचमुच में जी-जान से और अविराम प्रयत्न करता रहूं। मोक्ष अथवा सशरीरी अस्तित्व की आवश्यकता से मुक्ति की कल्पना का आधार है, संपूर्णता को पहुंचे हुए पूर्ण अहिंसक स्त्री-पुरुषों की आवश्यकता। सम्पत्ति-मात्र के कारण कुछ-न-कुछ हिंसा करनी पड़ती है। शरीररूपी सम्पत्ति की रक्षा के लिए भी चाहे जितनी थोड़ी, किन्तु हिंसा करनी पड़ती है। श्रद्धा के आलोक में जो सत्य उपलब्ध होता है, वह बुद्धि या तर्कवाद के आलोक में नहीं होता। महात्मा गांधी के पास श्रद्धा का अमित बल था। वे ईश्वर के प्रति अत्यन्त श्रद्धाशील थे। उनका ईश्वर था सत्य। आचार्य भिक्षु भी भगवान के प्रति श्रद्धालु थे। उनका भगवान था संयम। जो सत्य है वही संयम है और जो संयम है वही सत्य है। भगवान् महावीर की भाषा में-- “जो सम्यक् है वही मौन है और जो मौन है वही सम्यक है।"३ भगवान महावीर संयम के प्रतीक थे। उन्होंने वही कार्य करने की आज्ञा दी, जिसमें संयम था। उनकी आज्ञा और संयम में कोई भेद नहीं है। जो उनकी आज्ञा है वह संयम है और जो संयम है वही उनकी आज्ञा है। धर्मदासगणी ने लिखा है-"भगवान की आज्ञा से ही चारित्र की आराधना की जाती है। उसका भंग करने पर क्या भग्न नहीं होता? जो १. अहिंसा, प्रथम भाग, पृ. ६१ २. वही, पृ.६८ ३. आयारो, ५/५७ : जं सम्मति पासहा तं मोणंति पासहा, जं मोणंति पासहा तं सम्मति पासहा! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy