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________________ २४ : भिक्षु विचार दर्शन मर्यादा नहीं। ___संयम का स्वागत दुनिया के तमाम शास्त्र करते हैं। स्वच्छन्दता के विषय में शास्त्रों में भारी मतभेद है। समकोण सब जगह एक ही प्रकार का होता है। दूसरे कोण अगणित हैं। अहिंसा और सत्य-ये सब धर्मों के समकोण हैं। जो आचार इस कसौटी पर न उतरे, वह त्याज्य है। इसमें किसी को शंका करने की आवश्यकता नहीं। अधूरे आचार की इजाजत चाहे हो । अहिंसा-धर्म का पालन करने वाला निरन्तर जागरूक रहकर अपने हृदय-बल को बढ़ाए और प्राप्त छूटों के क्षेत्र को संकुचित करता जाए। भोग हरगिज धर्म नहीं। संसार का ज्ञानमय त्याग ही मोक्ष-प्राप्ति है। ३. लेकिन उससे यह अर्थ नहीं निकाल सकते कि 'गीता' में हिंसा का ही प्रतिपादन किया गया है। यह अर्थ निकालना उतना ही अनुचित है, जितना यह कहना कि शरीर-व्यापार के लिए कुछ हिंसा अनिवार्य है और इसलिए हिंसा ही धर्म है। सूक्ष्मदर्शी इस हिंसामय शरीर से अशरीरी होने का अर्थात् मोक्ष का ही धर्म सिखाता है। ४. जिसे भय लगता है, जो संग्रह करता है, जो विषय में रत है, वह अवश्य ही हिंसामय युद्ध करेगा। लेकिन उसका वह धर्म नहीं है, धर्म तो एक ही है। अहिंसा के मानी है मोक्ष और मोक्ष सत्यनारायण का साक्षात्कार ___५. सिद्धान्त को ढूंढने में कोई मुश्किल नहीं होती है। उसका केवल अमल करने में ही सभी मुश्किलें आ पड़ती हैं। इसलिए सिद्धान्त तो इस विषय में पूर्ण हैं। उनका अमल करने वाले हम मनुष्य अपूर्ण हैं। अपूर्ण के द्वारा पूर्ण का अमल होना अशक्य होने के कारण, प्रतिक्षण सिद्धान्त के उल्लंघन की नई मर्यादा ठीक करनी पड़ती है। इससे हिन्दूशास्त्र में कह दिया गया है कि यथार्थ की हुई हिंसा, हिंसा नहीं होती। यह अपूर्ण सत्य है। हिंसा तो सभी समय हिंसा ही रहेगी और हिंसा मात्र पाष है। किन्तु जो हिंसा अनिवार्य हो पड़ती है, उसे व्यवहार-शास्त्र पाप नहीं मानता। इसलिए यथार्थ में की गई हिंसा का व्यवहार-शास्त्र अनुमोदन करता है और उसे शुद्ध पुण्य-कर्म मानता है। १. अहिंसा, प्रथम भाग, पृ. ३२ २. वही, पृ. ४१-४२ ३. वही, पृ. ४२ ४. वही, पृ. ५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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