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२० : भिक्षु विचार दर्शन नहीं होता। एक करणी में दोनों नहीं हो सकते।'
७. पाप और धर्म की करणी भिन्न-भिन्न है।
८. अव्रत का सेवा करना, कराना और अव्रत-सेवन का अनुमोदन करना पाप है।
६. व्रत का सेवन करना, कराना और व्रत-सवन कर अनुमोदन करना धर्म है।
१०. सम्यग्-दृष्टि लौकिक और लोकोत्तर मार्ग को भिन्न-भिन्न मानता
११. धर्म त्याग में है, भोग में नहीं। १२. धर्म हृदर्य-परिवर्तन में है, बलात्कार में नहीं। १३. असंयति के जीने की इच्छा करना राग है। १४. उसके मरने की इच्छा करना द्वेष है। १५. उसके संयति होने की इच्छा करना धर्म है।
ये सिद्धान्त नए नहीं थे। आचार्य भिक्षु ने कभी नहीं कहा कि मैंने कोई नया मार्ग ढूंढ़ा है। उन्होंने यही कहा-''मैंने भगवान् महावीर की वाणी को जनता के सम्मुख यथार्थरूप में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है।" यह बहुत बड़ा सत्य है। दुनिया में नया तत्त्व कोई है भी नहीं। जो है वह पुराना है, बहुत पुराना है। नए का अर्थ है पुराने को प्रकाश में लाना। जो आलोक बनकर पुराने को प्रकाशित करता है, वही नव-निर्माता है। संसार के जितने
१. निह्नव चौपाई ३, दुहा ३ :
पाप कीयां .धर्म न नीपजे, धर्म थी पाप न होय।
एक करणी में दोय न नीपजे, ए संका म आणो कोय॥ २. व्रताव्रत ११.३२ :
मून में पाप धर्म दोनूं कहि कहि, घणां लोकां में विगोया रे।
बले सिष सिषणी पोता रा हुंता, त्यांने तो जाबक बोया रे। ३. निह्नव चौपाई २.५ :
इविरत सेवायां सेवीयां भलो जांणीयां, तीनूंइ करणा पाप हो।
एहवो भगवंत वचन उथाप नें. कीधी छे मिश्र री थाप हो॥ ४. अणुकम्पा, ११-५०
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