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भूमिका : २१
भी नव-निर्माता हुए हैं, उन्होंने यहीं किया है- आलोक बनकर प्राचीन को नवीन बनाया है । महात्मा गांधी ने अपने अहिंसक प्रयोगों के सम्बन्ध में लिखा है - मैं कोई नया सत्य प्रदर्शित नहीं करता। मैं बहुत से पुराने सत्यों पर नया प्रकाश डालने का दावा अवश्य करता हूं।' मैंने पहला मौलिक सत्याग्रही होने का दावा कभी नहीं किया। जिसका मैंने दावा किया है, वह है उस सिद्धान्त का लगभग सार्वभौम पैमाने पर उपयोग । २
पुराना सत्य जब नया बन कर आता है तब विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं होती हैं | आचार्य भिक्षु ने जिस सत्य को प्रकाशित किया, वह नया नहीं है, प्राचीन आचार्यों ने इसे प्रकाशित किया है, किन्तु वह नया इसलिए लगता है कि आचार्य भिक्षु ने जिस व्यवस्थित रूप से इसे सैद्धांतिक रूप दिया है, उस रूप में अन्य आचार्यों ने सैद्धांतिक रूप नहीं दिया। यह स्पष्ट शब्दों में कहा जा सकता है कि किसी भी एक आचार्य ने ये सारी बातें नहीं कहीं । विकीर्ण रूप में देखें तो आचार्य धर्मदासगणी ने लिखा है
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“जो तप और नियम में सुस्थित हैं, उनका जीना भी अच्छा है और मरना भी अच्छा है। वे जीवित रहकर गुणों का अर्जन करते हैं और मरकर सुगति को प्राप्त होते हैं । "३
" जो पाप कर्म करने वाले हैं, उनका जीना भी अच्छा नहीं है और मरना भी अच्छा नहीं है। वे जीवित रहकर वैर की वृद्धि करते हैं और मरकर अन्धकार में जा गिरते हैं ।”
आचार्य जिनसेन ने लिखा है
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"अर्थ और काम से सुख नहीं होता, क्योंकि वे संसार को बढ़ाने वाले हैं। जो धर्म सावद्य की उत्पत्ति करता है, उस धर्म से भी सुख नहीं होता ।
१. यंग इंडिया, भाग १, पृ. ५६७
२. वही, भाग ३, पृ. ३६७
३. उपदेशमाला, श्लोक ४४३
तवनियमसुट्ठियाणं कल्याणं जीविअं पि मरणं पि । जीवंतऽऽज्जति गुणा, मयाऽवि पुण सुग्गई जंति॥
४. वही, श्लोक ४४४ :
अहियं मरणं च अहिअं जीवियं पावकम्मकारीणं । तमसम्मि पडति मया, वेरं वडुंति जीवंता ॥
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