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________________ १८ : भिक्षु विचार दर्शन शुरू किया। साधु, साध्वी श्रावक, श्राविका-चारों तीर्थ तेरापंथ को आधार मानकर चलने लगे। सारा कार्य स्थिर भाव में परिणत हुआ, तब आचार्य भिक्षु ने वि. १८३२ में संघ-व्यवस्था की ओर ध्यान दिया और पहला लेख पत्र लिखा। इस प्रकार आचार-शुद्धि के अभियान की दृष्टि से तेरापंथ का उदय वि.१८१७ में हुआ। प्रचार की दृष्टि से उसका उदय मुनि-युगल की प्रार्थना के साथ-साथ हुआ। उसका विस्तार ग्रन्थ-निर्माण के साथ-साथ हुआ और उसका संगठित रूप लेख-पत्र के साथ वि. १८३२ में हुआ। 'साधन बीज है और साध्य वृक्ष, इसलिए जो सम्बन्ध बीज और वृक्ष में है, वही सम्बन्ध साधक और साध्य में हैं। महात्मा गांधी के इस विचार का उद्गम बहुत प्राचीन हो सकता है; किन्तु इसके विशाल प्रवाह आचार्य भिक्षु हैं। आचार्य भिक्षु रहस्यमय पुरुष हैं। अनेक लोगों की धारणा है कि उन्होंने वैसा कहा है, जो पहले कभी नहीं कहा गया। उनके विचारों में विश्वास न रखने वाले कहते हैं- “उन्होंने ऐसी मिथ्या धारणाएं फैलाई हैं जो सब धर्मों से निराली हैं।" उनके विचारों में विश्वास रखने वाले कहते हैं- “उन्होंने वह आलोक दिया है, जो धर्म का वास्तविक रूप है।" इसमें कोई सन्देह नहीं कि वे अलौकिक पुरुष हैं। उनका तत्त्व-ज्ञान और उनकी व्याख्याएं अलौकिक हैं। लौकिक-पुरुष साध्य की ओर जितना ध्यान देते हैं, उतना साधन की ओर नहीं देते। धर्म इसलिए अलौकिक है कि उसमें साधन का उतना ही महत्त्व है, जितना कि साध्य का। आचार्य भिक्षु ने यह सूत्र प्रस्तुत किया-“अहिंसा के साधन उसके अनुकूल हों तभी उसकी आराधना की जा सकती है, अन्यथा वह हिंसा में परिणत हो जाती हैं।" इस सूत्र ने लोगों को कुछ चौंकाया। किन्तु इसकी व्याख्या ने तो जनमानस को आन्दोलित ही कर दिया। आचार्य भिक्षु ने कहा १. कई लोग कहते हैं-“जीवों को मारे बिना धर्म नहीं होता। यदि १. भिक्षु जस रसायण १०, १०: प्रगट मेवाड़ में पूज पधारिया, जुगत आंचार नी जोड़ हो। अनुकम्पा दया दान रे ऊपरे, जोड़ां करी धर कोड़ हो॥ २. हिन्दी स्वराज्य, पृ. २२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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