________________
१४ : भिक्षु विचार दर्शन
माना। एक आचार्य ने एक प्रवृति का खण्डन किया हैं, दूसरे ने उसका समर्थन किया है। हरिभद्र सूरि ने साधु को तीसरे पहर के अतिरिक्त गोचरी करने और बार-बार आहार करने को शिथिलाचार बताया है, किन्तु आचार्य भिक्षु ने इसे अस्वीकार किया है।'
२. अनेक आचार्यों ने १४ उपकरणों से अधिक उपकरण रखना साधु के लिए निषिद्ध बतलाया है, किन्तु आचार्य भिक्षु ने इसका खण्डन किया
३. कई आचार्य की मान्यता रही है के साधु न लिखे और न चित्र बनाए। आचार्य भिक्षु ने इसका खण्डन किया है। . ४. हरिभद्र सूरि ने साध्वियों द्वारा लाया गया आहार लेने को शिथिलाचार कहा है, किन्तु आचार्य भिक्षु ने इसे शिथिलाचार नहीं माना।
५. कई आचार्यों ने साधुओं के लिए कविता करने का निषेध बतलाया है, आचार्य भिक्षु ने इसे मान्य नहीं किया। ___कहीं-कहीं रूढ़ियों में कठोर आचार और कठोर आचार में रूढ़ि की कल्पना हो जाती है। यद्यपि सामयिक विधि-निषेधों के आधार पर चारित्र शुद्धि या शिथिलता का ऐकान्तिक निर्णय करना कठिन हो जाता है, फिर भी कुछ विषय ऐसे स्पष्ट होते हैं कि उनके आधार पर चारित्र की शुद्धि या शिथिलता का निर्णय करने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होती।
आचार्य भिक्षु ने चारित्रिक-शिथिलता के जो विषय प्रस्तुत किए हैं उनमें कुछ विषय ऐसे हैं जो प्रचुर मात्रा में व्याप्त थे और जिनके कारण तत्कालीन साधु-समाज को चारित्र-शिथिलता से आक्रान्त कहा जा सकता है। कुछ ऐसे हैं, जो किसी-किसी साधु में मिलते होंगे। भिक्षु का दिशा-सूचक यंत्र आगम थे। उन्हीं के सहारे से उन्होंने शुद्धाचार-अनाचार का निर्णय किया। उनका कहना था-'आगम और जिन-आज्ञा ही मेरे लिए प्रमाण हैं। वे ही मेरे आधार हैं।' उनके सब निर्णय इसी कसौटी पर कसे हुए थे और इसीलिए अपने आप में शुद्ध थे। १. आचार री चौपई : ढाल १७ २. जिनाग्या रो चौढालियो : उपकरण की ढाल ३. वही। ४. आचार री चौपई : ढाल ६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org