________________
१६२ : भिक्षु विचार दर्शन
इस काल में ऐसे भेखधारी हैं। उनका भगवान् महावीर के प्रति आत्म-निवेदन भी बड़ा मार्मिक हैभगवान् आज यहां कोई सर्वज्ञ नहीं है और श्रुतकेवली भी विच्छिन्न हो चुके। आज कुबुद्धि कदाग्रहियों ने जैन-धर्म को बांट दिया है। छोड़ चुके हैं जैन-धर्म को राजा, महाराजा सब। प्रभो! जैन-धर्म आज विपदा में है, केवलज्ञान-शून्य भेख बढ़ रहा है। . इन नामधारी साधुओं ने पेट पूर्ति के लिए,
दूसरे दर्शनों की शरण ले ली है। इन्हें कैसे फिर मार्ग पर लाया जाए? इनकी विचारधारा का कोई सिर-पैर नहीं है, न्याय की बात कहने पर ये कलह करने को तैयार हो जाते हैं। प्रभो! तुमने कहा हैसम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तपमुक्ति के मार्ग ये ही हैं। मैं इनके सिवाय किसी को मक्ति-मार्ग नहीं मानता। मैं अरिहंत को देव,
और मानता हूं गुरु निर्गन्थ को ही। धर्म वही है सत्य सनातन, जो कि अहिंसा कहा गया है। . शेष सब मेरे लिए भ्रम-जाल है।
१. आचार री- चौपाई, ६.२८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org