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८ : भिक्षु विचार दर्शन
१३. आज वैराग्य घट रहा है, भेख बढ़ रहा है। हाथी का भार गधों
पर लदा हुआ है। वे थक गए हैं और उन्होंने वह भार नीचे डाल दिया है।
आचार-शिथिलता के विरुद्ध जैन परम्परा में समय-समय पर क्रान्ति होती रही है। आर्य सुहस्ती आर्य महागिरि के सावधान करने पर तत्काल सम्हल गए। चैत्यवास की परम्परा के विरुद्ध सुविहित-मार्गी साधु बराबर जूझते रहे। हरिभद्र सूरि ने 'संबोध प्रकरण' की रचना कर चैत्यवासियों के कर्तव्यों का विरोध किया। जिनवल्लभ सूरि ने 'संघपट्टक' की रचना की
और सुविहित-मार्ग को आगे बढ़ाने का यल किया। जिनपति सूरि ने संघपट्टक पर ३००० श्लोक-प्रमाण टीका लिखी, जिसमें चैत्यवास का स्वरूप विस्तार से बताया। चैत्यवास के विरुद्ध यह अभियान सतत चालू रहा।
विक्रम की सोलहवीं शती में लोंकाशाह ने मूर्ति-पूजा के विरुद्ध एक विचार-क्रान्ति की। लोंकाशाह की हूंडी में शिथिलाचार के प्रति स्पष्ट विद्रोह की भावना झलक रही है। ___ लोकाशाह के अनुगामी जो शिष्य बने, वे चारित्र की आराधना में विशेष जागरूक रहे।
वि. सं. १५८२ में तपागच्छीय आनन्दविमलसूरि ने चारित्र-शिथिलता को दूर करने का प्रयत्न किया। वे स्वयं उग्र-विहारी बने। उन्होंने १५८३ में एक ३५ सूत्रीय लेखन-पत्र लिखा। उसके प्रमुख सूत्र इस प्रकार हैं
१. विहार गुरु की आज्ञा से किया जाए। २. वणिक् के सिवाय दूसरों को दीक्षा न दी जाए। ३. परीक्षा कर गुरु के पास विधिपूर्वक दीक्षा दी जाए। ४. गृहस्थों से वेतन दिलाकर पंडितों के पास न पढ़ा जाए।
५. एक हजार श्लोक से अधिक 'लहियों' (प्रतिलिपि करने वालों) से न लिखाया जाए।
१. आचार री चौपई : ६.२८ : २. बृहत्कल्प चूर्णि, उद्देशक १, निशीथ चूर्णि उ. ८। ३. १६६ बोल की हुंडीः शिशुहित शिक्षा, पृ. १५५ । ४. जैन साहित्य संशोधन, खण्ड ३, अंक ४, पृ. ३५६ ।
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