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भूमिका : ७
७. गृहस्थ के साथ समाचार भेजते हैं।' ८. मर्यादा से अधिक वस्त्र रखते हैं। ६. मर्यादा से अधिक सरस आहार लेते हैं। १०. जीमनवारों में गोचरी जाते हैं। ११. चेली-चेला बनाने के लिए आतुर रहते हैं। इन्हें सम्प्रदाय चलाने
से मतलब है, साधुपन से नहीं। १२. साधुओं के पास जाते हुए श्रावकों को ज्यों-त्यों रोकने का यत्न
करते हैं। उनके कुटुम्ब में कलह का बीज बो देते हैं। १. आचार री चौपई : १.२७२८ :
गृहस्थ में साथे कहे संदेसो, ते भेलो हुओ संभोग जी। 'तिण ने साधु किम सरधीजे, लागो जोग में रोग जी। समाचार विवरा सुध कहि कहि, सानी कर गृही बुलाय जी।
कागद लिखावे करे आमनां, परहथ दीए चलाय जी॥ २. वही, १.४१-४२ :
कपड़ा में लोपी मरजादा, लांबा पेना लगाय जी। इधिको राखे दोयवड ओढ़े, वले वोले मुसा बाय जी। उपगरण नें इधिका राखे, तिण मोटो कीयो अन्याय जी।
नसीत रे सोलमें उद्देशे, चौमासी चारित जाय जी॥ ३. वही, १.३८:
सरस आहार ले विन मरजादा, तो बधे देही री लोथ जी।
काचमणी प्रकाश करे जिम, कुगुरु माया थोथ जी॥ ४. वही, १.२०-२६
जीमणवार में वेहरण जाए, आ साधां री नहीं रीत जी। वरज्यो 'आचारांग बृहत्कल्प में, उतराधेन नसीत जी॥ आलस नहीं आरा में जातां, वले बेठी पांत वसेष जी।
सरस आहार ल्यावे भर पातर, त्यां लज्या छोडी ले भेष जी॥ ५. वही, ३.११ : ६. वही, ५.३३-३४ :
केइ आवे सुध साधां कनें, तो मतीयां में कहे आम। थें वर्जी राखो घर रा मनुष्य में, जावा मत दो ताम॥ कहे दरसण करवा दो मती, वले सुणवा मत दो वांण। डराए में ल्यावो म्हां कनें, ए कुगुरु चरित पिछाण।
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