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________________ ६ : भिक्षु विचार दर्शन ___आचार्य भिक्षु ने (वि. १६वीं शती में) अपने समय की स्थिति का जो चित्र खींचा है, वह (वि. -वीं शती के) हरिभद्र सूरि से बहुत भिन्न नहीं है। वे लिखते हैं १. आज के साधु अपने लिए बनाए हुए स्थानकों में रहते हैं।' २. पस्तक, पन्ने, उपाश्रय को मोल लिवाते हैं। ३. दूसरों की निन्दा में रत रहते हैं।' ४. गृहस्थ को ऐसी प्रतिज्ञा दिलाते हैं कि तू दीक्षा ले तो मेरे पास • लेना और किसी के पास नहीं। ५. चेलों को खरीदते हैं।' ६. पुस्तकों का प्रतिलेखन नहीं करते। १. आचार री चौपई : १-२ : . आधाकर्मी थानक में रहे तो, ते पाडे चारित में भेद जी। नशीत रे दशमें उद्देशे, च्यार महीनां रो छेद जी ॥ २. वही, १.७ पुस्तक पातर उपाश्रादिक, लिवरावे ले ले नाम जी। आछा मुंडा कहि मोल बतावे, ते करे ग्रहस्थ नों काम जी ॥ ३. वही, १.१७ : पर निंदा में राता माता, चित्त में नहीं संतोष जी। वीर कह्यो दसमां अंग में, तिण वचन में तेरे दोष जी । ४. वही, १.१८-१६ : दिख्या ले तो मो आगे लीजे, ओर कनें दे पाल जी। कुगुरु एहवो सूंस करावे, ए चोडे ऊंधी चाल जी। ए बंधा थी ममता लागे, गृहस्थ सूं भेलप थाय जी। नशीत रे चीथे उद्देशे, दंड को जिणराय जी। ५. वही, १.२२ : घेला करण री चलगत उधी, चाला वोहत चलाय जी। साथे लीयां फिरे गृहस्थ ने, वले रोकड़ दाम दराय जी॥ ६. वही, १.२५ :. विण पडिलेह्या पुस्तक राखे, वले जमें जीयां रा जाल जी। पड़े कुंथुआ उपजे माकण, जिण बांधी भांगी पाल जी॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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