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________________ भूमिका : ५ बौद्ध भिक्षुओं में चैत्यवास जैसी परिग्रही परम्परा का प्रारम्भ सम्राट अशोक के समय से होता है । यद्यपि महात्मा बुद्ध अपने लिए बनाये गए विहार में रहते थे, किन्तु अशोक से पहले भिक्षु-संघ की जो स्थिति थी वह बाद में नहीं रही। "अशोक के बाद यह स्थिति बदली। बौद्ध धर्म राज्याश्रित बना। राज्याश्रय प्राप्त करने का प्रयत्न प्रथमतः बौद्धों ने किया या जैनों ने, यह नहीं कहा जा सकता। यदि यह सच माना जाए कि चन्द्रगुप्त मौर्य जैन था तो कहना पड़ेगा कि राज्याश्रय प्राप्त करने का प्रथम प्रयल जैनों ने किया। पर यह प्रश्न बहुत महत्त्व का नहीं है। इतना सच है कि अशोक के बाद बौद्ध और जैन-दोनों ही पंथों ने राज्याश्रय प्राप्त करने का प्रयत्न किया।" ___“अशोक के शिलालेखों में इसके लिए कोई आधार नहीं मिलता कि अशोक को बुद्धोपातक बनाने का किसी बौद्ध साधु ने प्रयत्न किया। पर यह बात भी विशेष महत्त्व की नहीं है। इसमें संदेह नहीं कि बौद्ध बनने के बाद उसने अनेक विहार बनवाए और ऐसी व्यवस्था की कि हजारों भिक्षुओं का निर्वाह सुखपूर्वक होता रहे। दंतकथा तो यह है कि अशोक ने चौरासी हजार विहार बनवाये, पर इसमें तथ्य इतना ही जान पड़ता है कि अशोक का अनुकरण कर उसकी प्रजा ने और आस-पास के राजाओं ने हजारों विहार बनवाये और उनकी संख्या अस्सी-नब्बे हजार तक पहुंची।" ___ "अशोक राजा के इस कार्य से बौद्ध भिक्षु-संघ परिग्रहवान् बना। भिक्षु की निजी सम्पत्ति तो केवल तीन चीवर और एक भिक्षा-पात्र भर थी। पर संघ के लिए रहने की एकाध जगह लेने की अनुमति बुद्ध-काल से ही थी। उस जगह पर मालिकी गृहस्थ की होती थी और वही उसकी मरम्मत आदि करता था। भिक्षु-संघ इन स्थानों में केवल चतुर्मास-भर रहता और शेष आठ महीने प्रवास करता हुआ लोगों को उपदेश दिया करता था। चातुर्मास के अतिरिक्त यदि भिक्षु-संघ किसी स्थान पर अधिक दिन रह जाता था, तो लोग उसकी टीका-टिप्पणी करने लगते थे। पर अशोक-काल के बाद यह परिस्थिति बिलकुल बदल गई। बड़े-बड़े विहार बन गए और उनमें भिक्षु स्थायी रूप से रहने लगे।"१ १. भारतीय संस्कृति और इतिहास, पृ. ६६-६७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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