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४ : भिक्षु विचार दर्शन
“ उच्चाटन करते हैं और वैद्यक, यंत्र, मन्त्र, गंडा, तावीज आदि में कुशल होते हैं ।"
"ये सुविहित साधुओं के पास जाते हुए श्रावकों को रोकते हैं; शाप देने का भय दिखाते हैं; परस्पर विरोध रखते हैं और चेलों के लिए एक-दूसरे से लड़ मरते हैं ।" "
जो लोग इन भ्रष्ट चरित्रों को भी मुनि मानते थे, उनको लक्ष्य करके श्री हरिभद्र सूरि कहते हैं
" कुछ नासमझ लोग कहते हैं - 'यह भी तीर्थंकरों का वेश है, इसे नमस्कार करना चाहिए ।' अहो, धिक्कार हो इन्हें ! मैं अपने सिरशूल की पुकार किसके आगे जाकर करूं ? २
१. संबोध प्रकरण : चेइयमढाइवासं पूयारंभाइ देवाइदव्यभोगं जिणहरसालाइ करणं
निच्चवासित्तं ।
च ॥ ६१॥
वत्थाइ विविहवण्णाइं अइसियसद्दाइं धूववासाई । परिहज्जइ जत्य गणे तं गच्छं मूलगुणमुक्कं ॥४६॥ अन्नत्थियवसहा इव पुरओ गायंति जत्थ महिलाणं । जत्य जयारमयारं भणति आलं सय दिति ॥ ४६ ॥ संनिहि महाकम्मं जलफलकुसुमाइ सव्व सच्चित्तं । निच्चं दुतिवारं भोयणं विगइलवंगाई तंबोलं ॥५७॥ नरयगइहेउ जोउस निमित्तितेगिच्छमंत जोगाई | मिच्छत्तरायसेव नीयाण वि पावसाहिज्जं ॥६३॥ मयकिच्च जिणपूया परूवणं मयधणाणं जिणदाणे । गिहिपुरओ अंगाइपवयणकणं धणट्ठाए ||६|| त्योवगरणपत्ताइ दव्वं नियनिस्सएण संगहियं । गिहि गेहंमि यजेसिं ते किणिणो जाण न हु मुणिणो ॥ ८१ ॥ गिहिपुरओ सज्झायं करंति अण्णोष्णमेव झूझति । सीसाइयाण कज्जे कलहविवायं उइरेंति ॥ १६२॥ किं बहुणा मणिएणं बालाणं ते हवंति रमणिज्जा । दक्खाणं पुण एए विराहगा छन्नपावदहा ॥ १६३ ॥
२. संबोध प्रकरण :
बाला वयंति एवं वेसो तित्थंकराण एसी वि । णमणिज्जो विद्धी अहो सिरसूलं कस्स पुक्करिमो ॥७३॥
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