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संघ-व्यवस्था : १५५
शिष्य-समझ गया हूं, गुरुदेव! हिंसा आदि दोषों का सेवन करने, कराने और उनका अनुमोदन करने का मनसा, वाचा, कर्मणा त्याग करने वाला ही महाव्रती हो सकता है। भगवन् ! मैं ऐसा ही होना चाहता हूं।
गुरु-जैसी तुम्हारी इच्छा।
शिष्य-इनके टूटने का क्रम क्या है? यदि कदाचित् कोई महाव्रत टूट जाए तो शेष तो बचे रहेंगे?
गुरु-यह कैसे हो सकता है?
शिष्य-तो फिर यह कैसे हो सकता है कि एक के टूटने पर सभी टूट जाए।
गुरु-एक भिखारी को पांच रोटी जितना आटा मिला। वह रोटी बनाने बैठा। उसने एक रोटी बना चूल्हे के पीछे रख दी। दूसरी रोटी तवे पर सिक रही थी, तीसरी अंगारों पर, चौथी रोटी का आटा उसके हाथ में था और पांचवी रोटी का आटा कठौती में पड़ा था।
एक कुत्ता आया। कठौती से आटे को उठाकर ले गया। उसके पीछे-पीछे वह भिखारी दौड़ा। वह ठोकर खाकर गिर पड़ा। उसके हाथ में जो एक रोटी का आटा था वह धूल से भर गया। उसने वापस आकर देखा तवे के पीछे रखी हुई रोटी बिल्ली ले जा रही है। तवे पर रखी हुई रोटी तवे पर और अंगारों पर रखी हुई अंगारों पर जल गई। एक रोटी का आटा ही नहीं गया, पांच रोटियां चली गई। गुरु ने कहा-यह अकस्मात् हो सकता है, पर यह सुनिश्चित है कि एक महाव्रत के टूटने पर सभी महाव्रत टूट जाते हैं।' ____ महाव्रत मूल गुण हैं। इनकी सुरक्षा के लिए ही उत्तर-गुणों की सृष्टि होती है। मर्यादाएं उत्तर-गुण हैं। मूल पूंजी ही न रहे तो उसकी सुरक्षा का प्रश्न ही मूल्यहीन हो जाता है।
अनुशासन और विनय का मूल्य महाव्रती जीवन में ही बढ़ता है। इसीलिए आचार्य भिक्षु ने एकाधिक बार कहा है कि मैंने जो मर्यादाएं की हैं, उनका मूल्य इसीलिए है कि वे महाव्रतों की सुरक्षा के उपाय हैं। ६. अनुशासन का उद्देश्य तीन प्रकार की नौकाएं हैं१. आचार री चौपाई, २४
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