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________________ संघ-व्यवस्था : १५३ महाव्रतों की युगपत् प्राप्ति को आचार्यवर ने संवादात्मक शैली से समझाया है गुरु-हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह-ये पांच महान् दोष हैं। इनके द्वारा जीव दुःख की परम्परा को बनाए रखता है। शिष्य-भगवन्! सुख की प्राप्ति के उपाय क्या हैं? गुरु-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-ये पांच महान् गुण हैं। इसके द्वारा जीव असीम सुख को प्राप्त होता है। . शिष्य-गुरुदेव! मैं अहिंसा महाव्रत को अंगीकार करता हूं। मैं आज से किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करूंगा। किन्तु गुरुदेव! वाणी पर मेरा इतना नियन्त्रण नहीं कि मैं असत्य बोलना छोड़ सकू। गुरु-शिष्य! इस प्रकार महाव्रत अंगीकार नहीं किये जा सकते। असत्य बोलने का त्याग किये बिना तुम अहिंसा-महाव्रती कैसे बन पाओगे? असत्य बोलने वाला हिंसा में धर्म बताने में क्या संकोच करेगा? ___ असत्य-भाषी इस सिद्धांत का भी प्रचार कर सकता है कि हिंसा में भी धर्म है तो उसे कौन रोकेगा? असत्य और हिंसा दोनों साथ-साथ रहते हैं। जहां हिंसा है, वहां असत्य वचन नहीं भी हो सकता, किन्तु जहां असत्य वचन है, वहां हिंसा अवश्य है। इसलिए असत्यभाषी रहकर तुम अहिंसा के महाव्रती नहीं बन सकते। शिष्य-गुरुदेव! मैं हिंसा और असत्य दोनों का त्याग करूंगा, परन्तु मैं चोरी नहीं छोड़ सकता। धर्म के प्रति मेरी अत्यन्त लालसा है। गुरु-तु हिंसा नहीं करेगा, असत्य भी नहीं बोलेगा तो चोरी कसे कर सकेगा? तू चोरी कर के सत्य बोलेगा तो चोरी का धन तेरे पास कैसे रहेगा लोग तुझे चोरी करने भी कब देंगे? - दूसरों का धन चुराने से कष्ट होता हैं। किसी को कष्ट देना हिंसा है। इस प्रकार तेरा पहला महाव्रत टूट जाएगा और तू यह कहे कि धन चुराने में हिंसा नहीं है तो दूसरा महाव्रत भी टूट जाएगा। शिष्य-अच्छा गुरुदेव! मैं इन तीनों महाव्रतों को अंगीकार कर लूंगा. पर मैं ब्रह्मचारी नहीं बन सकता। भोग मुझे बहुत प्रिय हैं। गुरु-अब्रह्मचारी पहले तीनों महाव्रतों को तोड़ देता हैं। अब्रह्मचर्य सभी गुणों को इस प्रकार जला डालता है जिस प्रकार धुनी हुई रुई को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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