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________________ संघ-व्यवस्था : १४७ न कराया जा सकता है। उसका पालन करने वाला श्रद्धावान् हो, हृदयवान् हो तभी उसका निर्वाह हो सकता है। आचार्य भिक्षु ने अपने प्रिय शिष्य भारीमलजी से कहा-यदि तुझमें किसी ने खामी बताई, तो प्रत्येक खामी के लिए तेला (त्रिदिवसीय उपवास) करना होगा।" उन्होंने उसे स्वीकार करते हुए कहा-“गुरुदेव! यदि कोई झूठमूठ ही खामी बता दे तो?' आचार्यवर ने कहा-"तेला तो करना ही है। खामी होने पर कोई उसे बताए, तो 'तेला' उसका प्रायश्चित्त हो जाएगा। खामी किए बिना भी कोई उसे बताए, तो मान लेना कि यह किये हुए कर्मों का परिणाम है।" - भारीमलजी ने आचार्य की वाणी को सहर्ष शिरोधार्य कर लिया। तर्क से यह कभी शिरोधार्य नहीं किया जा सकता था। एक आचार्य ने अपने शिष्य से कहा-“जाओ, सांप की लम्बाई को नाप आओ।" शिष्य गया, एक रस्सी से उसकी लम्बाई को नाप लाया। आचार्य जो चाहते थे वह नहीं हुआ। आचार्य ने फिर कहा- “जाओ, सांप के दांत गिन आओ।" शिष्य गया, उसके दांत गिनने के लिए मुंह में हाथ डाला कि सांप ने उसे काट खाया। आचार्य ने कहा-"बस काम हो गया।" उसे कम्बल उढ़ा सुला दिया। विष की गर्मी ने उसके शरीर में से सारे कीड़ों को बाहर फेंक दिया। अधिकांश लोग जो अपने आपको कूटनीतिक मानते हैं, अहिंसा में विश्वास नहीं करते। जहां हिंसा है, बल-प्रयोग है, राजसी वृत्तियां हैं, वहां हृदय नहीं होता, छलना होती है। छलना और श्रद्धा के मार्ग दो हैं। श्रद्धा निश्छल भाव में उपजती है। जहां नेता के तर्क के प्रति अनुगामी का तर्क आता है, वहां बड़े-छोटे का भाव नहीं होता, वहां होता है-तर्क की चोट से तर्क का हनन। आज का चतुर राजनयिक तर्क को कवच मानकर चलता है, पर यह भूल है। प्रत्यक्ष या सीधी बात के लिए तर्क आवश्यक नहीं होता। तर्क का क्षेत्र है अस्पष्टता। स्पष्टता का अर्थ है प्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष का अर्थ है, तर्क १. भिक्षु जस रसायण, ११, ६-१० . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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