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६. संघ-व्यवस्था
१. यह मार्ग कब तक चलेगा?
किसी व्यक्ति ने पूछा-"महाराज? आपका मार्ग बहुत ही संयत है, यह कब तक चलेगा?' आचार्य भिक्षु ने कहा- “उसका अनुगमन करने वाले साधु-साध्वी जब तक श्रद्धा और आचार में सुदृढ़ रहेंगे, वस्त्र पात्र आदि उपकरणों की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करेंगे और स्थानक बांध नहीं बैठेंगे, तब तक यह मार्ग चलेगा।'
अपने लिए स्थान बनाने वाले वस्त्र-पात्र आदि की मर्यादा का लोप करते हैं और एक ही स्थान में पड़े रहते हैं-इस प्रकार वे शिथिल हो जाते हैं। मर्यादा को बहुमान देकर चलने वाले शिथिल नहीं होते।
धर्म आराधना है। वह स्वतन्त्र मन से होती है। मन की स्वतन्त्रता का अर्थ है-वह बाहरी बन्धन से मुक्त हो और अपनी सहज मर्यादा में बंधा हुआ हो । कानून बाहरी बन्धन है। धार्मिक नियम कानून नहीं हैं। वे मनवाये नहीं जाते। धर्म की आराधना करने वाले उन्हें स्वयं अंगीकार करते हैं।
आचार्य भिक्षु ने तेरापथ-संघ को संगठित किया। उसकी सुव्यवस्था के लिए अनेक मर्यादाएं निर्धारित की। जब उन्होंने विशेष मर्यादाएं बनानी चाही तब साधु-साध्वियों को पूछा। उन्होंने भी यह इच्छा प्रकट की कि ये होनी चाहिए।
फलित की भाषा में कहा जा सकता है कि मर्यादाओं के निर्माण में सूझ आचार्य भिक्षु की थी और सहमति सबकी। मर्यादा किसी के द्वारा किसी पर थोपी नहीं गई, बल्कि सबने उसे स्वयं अपनाया। ..
आचार्य भिक्षु सूझ-बूझ के धनी थे। उन्होंने व्यवस्था के लिए अनेक
१. भिक्खु दृष्टान्त, ३०७, पृ. १२१ २. लिखित, १८३२
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