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________________ क्षीर-नीर : . १४३ रखकर चलते हैं। वे अपने उपयोगी जीवों को बचाते हैं और अनुपयोगी जीवों की उपेक्षा करते हैं । उपयोगिता और अहिंसा का सिद्धान्त एक नहीं । गांधीजी ने जो उत्तर दिया, ' वह काका कालेलकर को नहीं जंचा। तब किशोरीलाल भाई ने इसके साथ अपनी व्याख्या और जोड़ दी, वह यह है " मन तटस्थ या उदासीन हो तो बचाने का प्रयत्न न किया जाए । जीव को बचाने की वृत्ति जागृत हो जाए, दया भाव उमड़ पड़े तो उसे दबाने की अपेक्षा जीवों को बचाने का प्रयत्न करना अच्छा है"" यह करुणा के उभार की बात है। गांधी जी ने जो कहा वह प्रकृति के नियम और सामाजिक उपयोगिता की बात है । अहिंसा की बात इससे भिन्न है और सूक्ष्म है। · अहिंसावादी और उपयोगितावादी अपने रास्ते पर कई बार मिलेंगे किन्तु अन्त में ऐसा अवसर भी आएगा जब उन्हें अलग-अलग रास्ते पकड़ने होंगे और किसी-किसी दिशा में एक-दूसरे का विरोध भी मानना होगा । १. धर्मोदय, पृ. ६३ । बधा ज प्राणिओने बचावानो आपणो धर्म नथी । गरोली जीवडांने खाय छे से शूं आना पहेला में कोई काबे जोयुं नथी ? गरोली पोतानी शोधे छे अमां ओटले के कुदरती व्यवस्थामां पड़वानु में मारुं कर्त्तव्य मान्युं नथी । जे जानवरों ने आपणे स्वार्थ खातर के शोख पीलाए छीए तेमने बचाववानो धर्म आपणे माथे लीधो छे अथी आगल आपणाथी जवाय नहीं । २. वही, पृ. ६३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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