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________________ १४० : भिक्षु विचार दर्शन जीव-रक्षा को अहिंसा का ध्येय मानने वालों के सामने दूसरी कठिनाइयां भी हैं। बहुत सारे प्रसंग ऐसे होते हैं जिनमें जीव-रक्षा का प्रश्न दूसरे जीवों के हितों का विरोधी होता है। आचार्य भिक्षु ने ऐसे सात प्रसंग उपस्थित किए, वे इस प्रकार हैं १. तलाई मेंढक और मछलियों से भरी है। उसमें काई जमी हुई है। अनेक प्रकार के जीव-जन्तु तैर रहे हैं। २. पुराने अनाज के ढेर पड़े हैं। उनमें कीड़े विचर रहे हैं। अनेक जीवों के अंडे रखे हुए हैं। ३. जमीकन्द से गाड़ी भरी है। जमीकन्द में अनन्त जीव हैं। उन्हें मारने से कष्ट होता है। ४. कच्चे जल के घड़े भरे हैं। जल की एक बूंद में असंख्य जीव होते हैं। जहां जल होता है, वहां वनस्पति होती है। इस दृष्टि से उसमें अनन्त जीव हैं। ५. कूड़े के ढेर में भीनी खात पड़ी है। उसमें अनेक जीव-जन्तु तिल-मिल कर रहे हैं। अपने किए हुए कर्मों से उन्हें ऐसा अधर्म जीवन मिला है। ६. किसी जगह बहुत चूहे हैं। वे इधर-उधर आ-जा रहे हैं। थोड़ा-सा शब्द सुनते ही वे भाम जाते हैं। ए सगला ने सतगुर मिल्या प्रतिबोध्या हो आण्या मारण ठाय । किण किण जीवां ने साधां उधया, तिणरो सुणजो हो विवरा सुधन्याय।। चोर हिंसक ने कुसीलीया, यारे ताई रे साधां उपदेस। त्यांने सावध रा निरवद किया, एहवो छे हो जिण दया धर्म रेस। ग्यांन दरसण चारित तीनूं तणो, साधां कीधो हो जिण थी उपगार। न तो तिरण तारण हुआ तेहना, उताऱ्या हो त्यांने संसार थी पार॥ ए तो चोर तीनूं समझ्या थका, धन रह्यो रे धणी ने कुसले खमे। हिंसक तीनूं प्रतिबोधीयां, जीव बचीया हो कीधो मारग रो नेम।। सील आदरीयो तेहनी, अस्त्री पड़ी हो कूआ माहे जाय। यारो पाप धर्म नहीं साध ने, रह्या मूंआ हो ती, इविरत माय।। धन रो धणी राजी हुवो धन रह्यां, जीव बचीया हो ते पिण हरषतथाय। साध तिरण तारण नहीं तेहना, नारी ने पिण हो नहीं डबोई आय। कोइ मूढ मिथ्याती इम कहे, जीव वचीया हो धन रह्यो ते धर्म। रो उणरी सरधा रे लेखे अस्त्री मुई हो तिणरा लागे कर्म॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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