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क्षीर-नीर : १४१
७. गुड़, चीनी आदि मीठी चीजों पर अनेक जीव मंडरा रहे हैं। मक्खियां भिनभिना रही हैं। वे आपस में एक दूसरे को मार डालते हैं। मक्खा, मक्खी को मार डालता है।
तलाई में भैंस आदि पशु जल पीने को आ रहे हैं। अनाज का ढेर देख बकरियां आ रही हैं। जमीकन्द की गाड़ी पर बैल ललचा रहे हैं। जल का घड़ा देख गाय जल पीने आ रही है। कूड़े के जीवों को चुगने के लिए पक्षी आ रहे हैं। चूहों पर बिल्ली झपट रही है। मक्खा मक्खी को पकड़ रहा है। भैंसों को हांकने से तलाई के जीवों की रक्षा होती है। बकरियों को दूर करने से अनाज के जीवों की रक्षा होती है। बैलों को हांक देने से जमीकन्द के जीव बचते हैं। गाय को हांकने से जल के जीवों की रक्षा होती है। पक्षियों को उड़ा देने से कूड़े के जीव जीवित रह सकते हैं। बिल्ली को भगा दिया जाए तो चूहे के घर शोक नहीं होता। मक्खे को थोड़ा इधर-उधर कर देने से मक्खी बच जाती है। .
पर अहिंसा के क्षेत्र में सब जीव समान हैं। कठिनाई यह है कि किसको भगाया जाए और किसको बचाया जाए? भैंस को हांका जाए तो उसे कष्ट होता है और न हांका जाए तो तलाई के जीव मरते हैं। ऐसे प्रसंगों में अहिंसक का धर्म यही है कि वह समभाव रखे। किसी के बीच में न पड़े।
१. अणुकम्पा, ४. १-१३
नाडो भरीयो छे डेडक माछल्यां, माहे नीलण फूलण रो पूर हो। लट फूहारा आदि जलोक सूं, तस थावर भरीया अरूड हो। सुलीया धान तणो ढिगलो पर्यो, माहे लटां ने इल्यां अथाय हो। सुलसल्यां इंडादिक अति घणा, किल विल करे तिण माय हो। एक गाडो भी जमीकन्द सूं तिणमें जीव घणा छे अनन्त हो। च्यार प्रज्या च्यार प्रण छे मार्यो कष्ट कह्यो भगवंत हो। काचा पाणी तणा माटा भऱ्या, घणा जीव छे अणगल नीर हो। नीलण फूलन आदि लटां घणी त्यांमें अनन्त बताया छे वीर हो॥
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