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१३० : भिक्षु विचार दर्शन
आत्मवादी का सर्वोपरि ध्येय मोक्ष होता है। उसकी साधना करना व्यक्ति का सहज धर्म है। इसलिए वह आध्यात्मिक उपकार करता है।
जो मिथ्या दृष्टि होता है, वह इन दोनों को एक मानता है और सम्यक्दृष्टि इन्हें भिन्न-भिन्न मानता है। ___ आम और धतूरे के फल एक सरीखे नहीं होते। किसी के बाग में वे दोनों प्रकार के वृक्ष हों, वह आम की इच्छा से धतूरे को सींचे तो उसका परिणाम क्या होगा? आम का वृक्ष सूखेगा और धतूरे का पौधा फलेगा। ठीक उसी प्रकार गहस्थ जीवन में व्रत-रूपी आम का वृक्ष और अव्रत-रूपी धतूरे का पौधा होता है। जो व्यक्ति व्रतों की दृष्टि से अव्रत को सींचेगा, उसे आम की जगह धतूरे का फल मिलेगा।
अमरीकी वायु सेना के चीफ ऑफ स्टाफ जनरल थामस ह्वाइट सीनेट वैदेशिक सम्बन्ध समिति की एक बैठक में ६ मई, १६५६ को कोई गवाही
आ दया तो पहिलो व्रत छे, साध श्रावक नौ धर्म । पाप रुके तिणसूं आवता, नवा न लागे कर्म॥ छ काय हणे हणावे नहीं, हणीयां भलो न जाणे ताय।
मन वचन काया करी, आ दया कही जिणराय॥ १. व्रताव्रत, ५,५-११: हिवे सुणजो चतुर सुजान, श्रावक रत्ना री खाण। व्रतां कर जाणजो ए, उलटी मत ताणजो ए॥ केइ रूंख . बाग में होय, आंव धतूरा दोय। फल नहीं सारिखा ए, करजो पारिखा ए॥ आंबा सूं लिव लाय, सींचे धतूरो आय। आसा मन अति घणी ए, अब लेवा तणी ए॥ पिण अब गयो कुमलाय, धतूरो रह्यो डहिडाय। आय ने जोवे जरे ए नेणां नीर झरे ए॥ इण दिष्टंते जाण, श्रावक व्रत अंब समाण। इविरत अलगी रही ए, धतूरा सम कहीं ए॥ सेवारे इविरत कोय, · व्रतां साह्मो जोय। ते भूला भर्म - में ए, हिंसा धर्म में ए॥ इविरत सूं बंधे कर्म, तिणमें नहीं निश्चे धर्म। तीनूं करण सारखां ए, ते विरला पारिखा ए॥
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