________________
क्षीर-नीर : १२६
का हेतु है। संसार और मोक्ष के मार्ग भिन्न हैं। वे समानान्तर रेखा की तरह एक साथ रहते हुए भी कहीं नहीं मिलते।
उनकी वाणी है-जो संसारिक उपकार करता है उसके संसार बढ़ता है, और जो मोक्ष के अनुकूल उपकार करता है उसके मोक्ष निकट होता
कोई गृहस्थ किसी गरीब को धन देकर सुखी बनाता है, यह सांसारिक उपकार है। वीतराग उसकी प्रशंसा नहीं करते।
उनकी वाणी है-एक लौकिक दया है। उसके अनेक प्रकार हैं। एक कुआं जल से भरा है, कोई उसमें गिर रहा था, उसे बचा लिया। कहीं लाय-आग लगी, कोई उसमें जल रहा था, उसे बचा लिया। यह दया है, उपकार है, पर है सांसारिक।
एक व्यक्ति पाप का आचरण कर रहा हो, उसे कोई समझाए, उसका हृदय बदल दे, वह जन्म-मरण के कुएं में गिरने से बचता है। यह दया है, उपकार है, पर है आध्यात्मिक।
सामाजिक प्राणी समाज में रहता है। सामाजरूपी धमनियां उसमें रक्त का संचार करती हैं इसलिए वह सांसारिक उपकार करता है। १. व्रताव्रत, ३.३
ते सावद्य दान संसार ना कारण, तिण में निरवद रो नहीं भेलो रे।
संसार ने मुगत रा मारग . न्यारा, ते कठे न खावे मेलो रे॥ २. अणुकम्पा, ११,३
संसार तणो उपगार करे छ, तिणरे निचश्चेइ संसार बधतो जाणो।
मोष तणो उपगार करे छे, तिणरे निश्चेइ . नेडी दीसे निरवाणो॥ ३. वही, ११.४-५
कोइ दलदरी जीव ने धनवंत कर दे, नव जात रो परिग्रहो देइ भर पूर। वले विविध प्रकारे साता उपजावे, उणरो जाबक दलदर कर दे दूर॥ छ काय रा सस्त्र जीव इविरति, त्यांरी साता पूछी ने साता उपजावे। त्यांरी करे वीयावच विवध प्रकारे, तिणने तीर्थंकर देव तो नहीं सरावे॥ ४. वही, ८ दू. ५
एक नाम दया लोकिक री, तिणरा भेद अनेक। तिणमें भेषधारी भूला घणा, ते सुणजी आण ववेक॥ ५. वही, ८ दू. १२-३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org