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क्षीर-नीर : १३१
दे रहे थे, उसके कुछ प्रसंग इस प्रकार हैं :
सीनेट गोरे : मैं पाकिस्तान को इतनी ज्यादा बड़ी रकम सैनिक सहायता के रूप में देने का समर्थन करना कठिन पाता हूं। - श्री मैक एल. रायः यह रक्षा-व्यवस्था निःसन्देह भारत के विरुद्ध नहीं, बल्कि उसे रूस और चीन के विरुद्ध दी गई है।
सीनेटर गोरेः अच्छा, आपका यह उद्देश्य हो सकता है, किन्तु हमारा जो अफसर उस कार्यक्रम का इंचार्ज है, वह कहता है कि पाकिस्तानी सैनिक अस्त्र-शस्त्र सहायता भारत के विरुद्ध चाहते हैं।
श्री मैक एल. रायः हम उनसे सहमत नहीं।
सीनेटर : किन्तु फिर भी आप उन्हें यह सहायता देते हैं और इसका उपयोग तो वे ही करेंगे, आप नहीं। दूसरे शब्दों में हम उन्हें सहायता एक उद्देश्य से देते हैं और वे उसे लेते हैं, दूसरे उद्देश्य से।
जनरल हाइटः मैं नहीं समझता कि ऐसा कहना न्याय-संगत है। निःसन्देह पाकिस्तानियों के ख्याल भारतीयों की तरफ से बिगड़े हुए हैं, किन्तु रूस के विरुद्ध भी उनके ऐसे ही भाव हैं।
सीनेटर चर्चः हम पाकिस्तानी को रूसी आक्रमण के विरुद्ध सहायता दे रहे हैं, किन्तु पाकिस्तानी भावना है कि खतरा मुख्यतः हिन्दुस्तान की ओर से है। मैं बहुत गम्भीरता से पूछता हूं कि क्या एक मित्र देश को, दूसरे के विरुद्ध शस्त्र-सज्जित करने में अमरीकी रुपये खर्च करना उचित हैं। ___यह संवाद आचार्य भिक्षु के उस उदाहरण की याद दिलाता है, जिसका प्रयोग उन्होंने असंयमपूर्ण सहयोग की स्थिति को समझाने के लिए किया था।
एक राजा ने दस चोरों को मारने का आदेश दिया। एक दयालु सेठ ने राजा से निवेदन किया कि आप चोरों को प्राण-दान दें तो मैं प्रत्येक चोर के लिए पांच सौ-पांच सौ रुपये दे दूं। राजा ने कहा-ये चोर बहुत दुष्ट हैं, छोड़ने योग्य नहीं हैं। सेठ ने कहा-सबको नहीं तो कुछेक को प्राणदान दें। सेठ का आग्रह देख कर राजा ने पांच सौ रुपये ले एक चोर को छोड़ा। नगर के लोग सेठ की प्रशंसा करने लगे। उसके परोपकार को बखानने लगे। चोर भी बहुत प्रसन्न हुआ। चोर अपने गांव गया। नौ चोरों के
१. हिन्दुस्तान, २३ जून १६५६
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