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६४ : भिक्षु विचार दर्शन
धन उपकार का साधन है पर आध्यात्मिक उपकार का साधन बनने की क्षमता उनमें नहीं है। कोई समर्थ व्यक्ति किसी दरिद्र को धन देकर सुखी बना देता है, यह सांसारिक उपकार है। सांसारिक उपकार से संसार की परम्परा चलती है और आध्यात्मिक उपकार से संसार का अन्त होता है अर्थात् मुक्ति होती है। साध्य वही सधता है जिसे अनुकूल साधन मिले।
कोई लाखों रुपये देकर मरते हुए जीवों को छुड़ाता है, यह संसार का उपकार है। यह आपका सिखाया हुआ धर्म नहीं है। इससे आत्ममुक्ति नहीं होती।
आचार्य भिक्षु के चिन्तन का निचोड़ यह है कि परिग्रह, बल-प्रयोग और असंयम का अनुमोदन-ये अहिंसात्मक तत्त्व नहीं हैं इसलिए मोक्ष के साधन भी नहीं हैं।
अपरिग्रह, हृदय-परिवर्तन और संयम का अनुमोदन-ये अहिंसात्मक तत्त्व हैं, इसलिए ये मोक्ष के साधन हैं।
आचार्य भिक्षु ने अहिंसा या दया के बारे में जो चिन्तन दिया, वह बहुत विशाल है। उसके कई पहलू हैं। पर उसका मुख्य पहलू साध्य-साधन की चर्चा है। आचार्य भिक्षु के समूचे चिन्तन को हम एक शब्द में बांधना चाहें तो उसे 'साध्य-साधनवाद' कह सकते हैं।
१. अणुकम्पा : ११.३-५ : २. व्रताव्रत, १२.५ कोइ जीव छुड़ावे लाखां दाम दे, ते तो आपरो सीखायो नहीं धर्म हो। ओ तो उपगार संसार नो, तिणसूं कटता न जाण्या आप कर्म हो।
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