________________
साध्य-साधना के विविध पहलू : ६१ एक जीव को मार दूसरे जीव की रक्षा करना, यह सूत्र में कहीं नहीं कहा गया है। यह भगवान् की वाणी नहीं है। ___अशुद्ध साधन की आलोचग करते हुए महात्मा गांधी ने लिखा है-“यह, तो कहीं नहीं लिखा है कि अहिंसावादी किसी को मार डाले। उसका रास्ता तो बिल्कुल सीधा है। वह एक को बचाने के लिए दूसरे की हत्या नहीं कर सकता।" जैन-धर्म में दया का रहस्य है-दुराचारी को समझा-बुझाकर सदाचारी किया जाए। यदि कोई चोर, हिंसक, व्यभिचारी आदि है तो उसे उपदेश देकर अधर्मी से धर्मी बनाया जाए। ___ महात्मा गांधी के शब्दों में उसका (अहिंसक का) कर्त्तव्य तो सिर्फ विनम्रता के साथ समझाने-बुझाने में है। यदि एक अशुद्ध साधन का प्रयोग किया जाए तो फिर नियन्त्रण की श्रृंखला ढीली हो जाती है। ___ आचार्य भिक्षु ने इस तथ्य को इन शब्दों में व्यक्त किया है-दो वेश्याएं कसाईखाने में गईं, जीवों का संहार होते देख उनका मन अनुकम्पा से भर गया। दोनों ने दो हजार जीवों को बचाने का संकल्प किया। एक ने अपने आभूषण दिए और जीवों की रक्षा की, दूसरी ने अनाचार का सेवन किया और जीवों की रक्षा की। आभूषण देकर जीवों की रक्षा करना, यह अहिंसा का शुद्ध साधन नहीं है। यदि इसे प्रयोजनीय माना जाए तो अनाचार सेवन कर जीवों की रक्षा करने का अप्रयोजनीय कहने का कोई तात्त्विक आधार नहीं रहता।
१. अणुकम्पा : ७.२५ :
जीव मारे जीव राखण, सूतर में हो नहीं भगवंत वेण।
उन्धो पंथ कुगुरां चलावीयो, सुध न सूझे हो फूटा अंतर नेण।। २. हिन्दु स्वराज्य, पृ. ७५-७६ ३. अणुकम्पा : ५.५ : ४. हिन्द स्वराज्य : पृ. ७६ ५. अणुकम्पा, ७.५१-५४ :
दोय वेस्या कसाइवाडे गइ, करता देख्या हो जीवां रा संघार । दोनूं. जण्यां मतो करी, मरता राख्या हो जीव एक हजार॥ एकण गेहणो देइ आपणो, तिण छोडाया हो जीव एक हजार । दूजी छोडाया इण विधे, एकां दोयां हो चोथो आश्रव सेवार।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org