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________________ प्रतिक्रिया से कैसे बचें ? (१) मैंने चुनाव किया और मुझे प्रसन्नता है कि मैं प्रतिक्रिया से अधिक से अधिक बचा हूं । इसका मुझे संतोष है। मुझे याद नहीं कि किसी के प्रति शत्रुता का भाव किया हो। मुझे मालूम हो जाता है कि अमुक आदमी मेरे बारे में अनिष्ट सोच रहा है, पर मैंने हमेशा यह सोचा कि वह सोच रहा है, उसकी शक्ति नष्ट हो रही है। एक आदमी को वमन हो रही है तो क्या जरूरी है. कि दूसरा भी वमन करे ? होता तो है, बड़ी दुर्बलता है । एक आदमी वमन करता है तो दूसरा भी वमन करने लग जाता है । पर जिसका मनोबल दृढ़ है, वह ऐसा नहीं करता । हिंसा एक विकट समस्या है। हमारे जीवन में हिंसा के बहुत प्रसंग आते हैं । प्रसंग आने पर हिंसा में न जाएं, प्रतिक्रिया के प्रसंग आने पर प्रतिक्रिया में न जाएं, अहिंसा और क्रिया का जीवन जी सकें तो हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि होती है । वह क्रियात्मक जीवन जीना अपने स्वतंत्र दायित्व का अनुभव करना है, स्वतंत्र कर्तृत्व का अनुभव करना है । व्यक्ति क्रियात्मक जीवन जीता है, I कोई भी काम करता है तो कर्तृत्व के आधार पर करता है, दायित्व के आधार पर करता है, किन्तु दूसरे के हाथ का खिलौना बनकर नहीं करता । प्रतिक्रिया करने वाला तो दूसरे के हाथ का खिलौना है। जो प्रतिक्रिया का जीवन जीता है, वह कठपुतली है, खिलौना है । ७९ 1 कहानी तो बच्चों की है पर मार्मिक है । बाप और बेटा दोनों घोड़े पर चढ़कर जा रहे थे। लोग मिले, बोले- देखो ! मरियल घोड़ा और उस पर बैठे हैं दो व्यक्ति । विचित्र आदमी है। तत्काल पिता के मन में प्रतिक्रिया हुई, वह नीचे उतर गया । अपना कोई चिन्तन नहीं था । चढ़ा तब चिन्तन के साथ ही चढ़ना था। अब लोगों ने कहा, वह नीचे उतर गया। बाप-बेटा थोड़ा आगे गए। दूसरे लोग मिले, बोले- देखो ! कैसा जमाना आया है। लड़का जवान है, ऊपर बैठा हुआ जा रहा है। बाप बेचारा जूते घिसते घिसते चल रहा है । काफी व्यंग कसा तो लड़का नीचे उतर गया और बाप ऊपर चढ़ गया। थोड़ा आगे चले । लोग मिले, बोले- देखो ! बड़ी विचित्र बात है कि बाप तो ऊपर बैठा है और बेचारा छोकरा नीचे चल रहा है। यह सुनकर बाप भी उतर गया । दोनों उतर गए, दोनों पैदल चलने लगे घोड़े की लगाम थामें । थोड़ा आगे चले, आदमी मिले, बोले- देखो ! कितने मूर्ख हैं। घोड़ा तो खाली चल रहा है, ये पैदल चल रहे हैं । 1 अब क्या करे ? प्रतिक्रिया का जीवन जीने वाला कहां जाए ? जाने का रास्ता नहीं बचता। सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं । इतना विचित्र चिन्तन और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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