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________________ दूसरे के बारे में अपना दृष्टिकोण ७७ जाएगी, उस दिन आदमी आदमी होगा, दूसरा होने पर भी आदमी आदमी होगा, चेतन होगा और उसके प्रति हमारा दृष्टिकोण विधायक रहेगा। मैं सोचता हूं कि जीवन के प्रति उतरते-चढ़ते क्षणों में सामाजिक समस्याओं के उलटते-पलटते पृष्ठों में आज एक बहुत बड़ी समस्या है। हजारों-हजारों समस्याओं की दुहाई और समाधान एक दो का भी उपलब्ध नहीं ! कैसा आश्चर्य ! धर्म के लोग भी समस्या उपस्थित करते हैं और समस्याओं का ताना-बाना इतना बड़ा हो गया है कि कहीं सिमटता नजर नहीं आ रहा है। इसका एक ही कारण है कि हमारी दृष्टि में मूर्छा है। जब दृष्टि में मूर्छा है तो हमारे चरित्र में भी मूर्छा है। दो ही मूर्छाएं होती हैं-दृष्टि की मूर्छा और चरित्र की मूर्छा। ध्यान करने वाले व्यक्ति को इस सचाई को बहुत गहराई से समझना है कि पहले दृष्टि की मूर्छा टूटनी चाहिए, दृष्टिकोण का परिमार्जन होना चाहिए। उसका आधार है अनुभव और प्रयोग । सिद्धान्त की बात अधूरी रह जाती है बिना प्रयोग के। प्रयोग और सिद्धान्त-इन दोनों का जोड़ होता है और इस जोड़ में से जो फलश्रुतियां निकलती हैं, वे बहुत मूल्यवान् होती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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