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चिन्तन का परिणाम
वाद-विवाद करना चाहते हो ? कोई नहीं कहता कि वाद-विवाद करना चाहता हूं। सब यही कहते हैं, जानना चाहता है। जानना चाहते हो तो बात छोड़ो, ध्यान करो मन को शांत करो, मौन करो, अन्तर्गौन करो और शरीर को स्थिर करना सीखो, सिद्ध करना सीखो। दरवाजे के पास जाओ। यह शरीर तो दरवाजा है। बड़ा विचित्र है, हमारे तत्त्वज्ञानी लोग दरवाजे के पास जाना नहीं चाहते, वे तो चाहते हैं बिलकुल सीधे भीतर पहुंच जाएं। डाइरेक्ट अप्रोच होना चाहिए, कोई बिचौलिया नहीं होना चाहिए। रास्ता तो पार करना पड़ेगा, बीच के रास्ते पार करने पड़ेंगे, सीधे कैसे पहुंच जाएंगे। वे चाहते हैं सीधे पहुंच जाएं। हमने मान लिया है कि आत्मा और परमात्मा की चर्चा करता है वह तत्त्वज्ञानी है और जो शरीर की चर्चा करता है वह तत्त्वज्ञान से परे चला जाता है। शरीर गन्दा है, उसकी क्या चर्चा करनी है ?
मैंने देखा, जो लोग मन, वचन और काया-इन तीनों की साधना में लग जाते हैं वे आत्मा तक और परमात्मा तक भी पहुंच जाते हैं किन्तु इनकी साधना किए बिना जो लोग बातों में उलझ जाते हैं, अनन्त काल बीत जाता है, लेकिन उन्हें न आत्मा मिलता है, न परमात्मा मिलता है, वे उलझते ही चले जाते हैं, उलझते ही चले जाते हैं, उन्हें कभी रास्ता नहीं मिलता। आदमी की वृत्ति ऐसी होती है कि वह जो सामने होता है उस पर ज्यादा ध्यान दे देता है, समग्रता की दृष्टि से विचार नहीं करता। समग्र दृष्टि के बिना सम्यग् परिणाम भी नहीं होता। मुझे एक कहानी याद आ रही है
चार मित्र चले जा रहे थे। उन चारों में तीन थे वैज्ञानिक और एक था अवैज्ञानिक। वैज्ञानिक होना एक बात है और बुद्धिमान होना दूसरी बात है। वे तीन थे वैज्ञानिक, किन्तु बुद्धिहीन। और चौथा था अवैज्ञानिक किन्तु बहुत बुद्धिमान । चारों जा रहे थे। जंगल आया। वहां एक शेर का अस्थिकंकाल पड़ा था। वैज्ञानिकों ने देखा, तत्काल वैज्ञानिक दृष्टि जागी और वे परस्पर बात करने लगे, आज तो प्रयोग का अवसर है। सुन्दर अवसर मिला है, प्रयोग करना है। प्रयोग के द्वारा इसको जीवित कर देना है, अस्थिपंजर में प्राण फूंकने हैं। तीनों ने परामर्श किया। एक ने कहा, इसमें मांस और चमड़ी मैं उत्पन्न कर दूंगा। दूसरे ने कहा, इसमें रक्त मैं पैदा कर दूंगा। तीसरे ने कहा, इसमें प्राण-संचार मैं कर दूंगा। चौथा बोला, परिणाम क्या होगा? ठहरो, मुझे पेड़ पर चढ़ जाने दो। वह पेड़ पर चढ़ गया। ऊपर बैठा-बैठा देखता रहा। तीनों ने अपना-अपना प्रयोग किया। कंकाल में प्राण-संचार हुआ और एक शेर खड़ा हो गया। वह भूखा था। उसने अपने सामने खड़े तीनों वैज्ञानिकों को मार डाला। उनका मांस खा भूख शान्त की। चौथा अवैज्ञानिक,
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