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________________ अभय की मुद्रा २६३ सफलता का सबसे बड़ा सूत्र है-चरित्र का विकास और चरित्र-विकास के ये तीन बड़े स्तम्भ हैं-अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह। हम अभय की मुद्रा का विकास करना चाहें तो अहिंसा का विकास करें। अहिंसा अभय की एक मुद्रा है। सत्य का विकास करें, सत्य अभय की एक मुद्रा है। असंग्रह का विकास करें, असंग्रह भय की एक मुद्रा है। जिसके अन्त:करण में ये भावनाएं जन्म लेती हैं, सचमुच वह अभय बन जाता है। मैं यह नहीं कहता हूं कि संग्रह नहीं हो। क्योंकि गृहस्थ के पास कुछ न कुछ संगृहीत होता ही है। एक बात स्पष्ट समझ लें-संग्रह होना और संग्रह के प्रति तीव्र आसक्ति होना-ये दो बातें हैं। हिसा अनिवार्यता है। हिंसा होना और हिंसा के प्रति लगाव होना-ये स्पष्टत: दो बातें हैं। कभी-कभी इस बात में आस्था जम जाना कि इस युग में असत्य के बिना काम नहीं चल सकता, बिलकुल दो बातें हैं। हमारी आसक्ति प्रबल न हो। अनिवार्यता और आसक्ति के बीच में एक सूक्ष्म और संकरी रेखा को हम स्पष्ट समझें। पदार्थ के बिना काम नहीं चल सकता। पदार्थ होता है, अनिवार्यता है। गृहस्थ तो क्या, साधु का भी काम नहीं चल सकता। साधु के पास भी कपड़ा है, पुस्तकें हैं, पात्र हैं। साधु के पास भी शिष्य हैं। पदार्थ हैं, व्यक्ति हैं। कोई भी जीवन धारण करने वाला, संसार में रहने वाला इन सबसे कटकर जी नहीं सकता। इन सबके साथ जीता है तो इन सबके प्रति जब ममत्व का भाव क्षीण, शांत बनता है तो संग्रह नहीं बनता, परिग्रह नहीं बनता। ममत्व का भाव जाग गया तो एक कपड़ा भी परिग्रह बन जाएगा। एक पुस्तक भी परिग्रह बन जाएगी। प्रेक्षा उस सचाई का प्रमाण है कि हमारी मूर्छा कितनी टूटती है, आसक्ति कितनी कमजोर होती है। यह आसक्ति को दुर्बल बनाने का प्रयत्न है, शक्ति के जागरण का प्रयत्न है और आनन्द को जगाने का प्रयत्न है। कोरी शक्ति नहीं. दोनों के बीच में शक्ति, एक ओर चेतना, एक ओर आनन्द। ये दो तट हैं और बीच में शक्ति की धारा प्रवाहित हो। कोई खतरा नहीं होता। आनन्द का तट टूट जाए, चेतना का तट टूट जाए और कोरी शक्ति जाग जाए तो उपद्रव की बात होती है, फिर विद्रोह और ध्वंस की बात होती है। शक्ति का जागरण भी बड़ा खतरनाक है। बिजली बहुत उपयोगी है, पर बिजली बहुत खतरनाक भी है। बिजली खोल में है तब तक तो ठीक है, पर खुले तार को हाथ छू लेवे, बड़ा खतरनाक काम हो जाता है। हमारी चेतना का जागरण हो, चेतना शुद्ध होगी तो अभय की मुद्रा विकसित होगी। चेतना का अनुभव अपने आप में अभय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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