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कैसे सोचें ?
नहीं छोड़ते थे। जहां जाते भीड़ इकट्ठी हो जाती। राजा, प्रजा सब लोग इकट्ठे हो जाते। पता चलता कि आनन्दघनजी के पास तो स्वर्णसिद्धि है, सोना बनाने की सिद्धि है, हजारों लोग उनके पास आने लगे। भीड़ बनी की बनी रहती। आराम लेने को क्षण भी नहीं मिलता। हर कोई चाहता कि मुझे सोना मिले, मैं सोना बना लूं। बड़ी मुसीबत हो गयी। वे जंगल में चले गए, फिर भी लोग पीछे लगे रहे। कोई आदमी आता कि महाराज, लड़का नहीं है, कोई कहता धन नहीं है, इस प्रकार सैकड़ों-सैकड़ों समस्याएं लेकर लोग आते। क्या करे? पीछा छुड़ाने के लिए कुछ लिखकर देते और कहते-देखो, इस पुड़िया को खोलना मत । साथ-साथ जो मैं कहूं, उस पथ्य का पालन भी करना। जब आदमी स्वीकार कर लेता, तब कहते-देखो ! अगर तुम सफलता चाहते हो तो छह महीने तक या बारह महीने झूठ नहीं बोल सकते। अब्रह्मचर्य का सेवन नहीं कर सकते. चोरी नहीं कर सकते। इस प्रकार पांचों अणुव्रतों की दीक्षा दे देते-अहिंसा, सत्य. अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का अणुव्रत। ध्यान रखना, अगर इसमें चूक हुई तो तुम्हारा काम नहीं होगा। अगर इसमें चूक न हो तो मेरे पास आ जाना। अब छह महीने, बारह महीने में भावना पूरी हो जाती। वह आता और कहता--महाराज ! आपने बड़ी कृपा की। मेरा काम सफल हो गया। वे हंसते और कहते-सफल किससे हए ? मैंने तो सिर्फ लिखा था-'तुम जानो तुम्हारा भाग्य जाने, मुझे क्या लेना देना।' इससे तुम्हारा काम हो गया। तुमने स्वयं चरित्र का पालन किया, स्वयं ने व्यवहार का परिष्कार किया, स्वयं ने आहार की शुद्धि की और काम बन
गया।
काम करने वाली शक्ति तो हमारे चरित्र की शक्ति है, हमारे चरित्र का बल है और वह बल जैसे-जैसे बढ़ता है आदमी में अभय का विकास होता है। जब अभय का बल बढ़ता है तो अनेक मनोकामनाएं मनुष्य की, जाने-अनजाने में पूरी हो जाती हैं। मनोकामना की पूर्ति में सबसे बड़ी बाधा भय है, सबसे बड़ी बाधा आशंका है और सबसे बड़ी बाधा सन्देह है। कोई काम शुरू करते हैं कि यह काम मेरा होना चाहिए, तत्काल मन में आता है-अरे भई ! मैंने सोचा तो है पर होगा या नहीं होगा ? क्या यह हो जाएगा ? दसों लोगों से पूछता है, मैंने यह बात सोची है, क्या पूरी हो जाएगी ? मन में संदेह, मन में आशंका, मन में दुर्बलता और कभी भय भी लगने लग जाता है कि मैंने यह बात कह तो दी लोगों को, अगर पूरी नहीं हुई तो बड़ी भद्दी लगेगी। भय से घिरा हुआ आदमी, आशंका से घिरा हुआ आदमी असफल तो पहले कदम में हो जाता है। फिर उसे क्या सफलता मिलेगी।
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