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अभय की मुद्रा
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अवस्था जो विधायक भाव की अवस्था है और तीसरी दोनों से परे जिसमें न कोई निषेधात्मक भाव है, न कोई विधायक भाव है, निर्विकल्प और निर्विचार अवस्था। यह बहुत सुन्दर अवस्था है, बहुत आगे की बात है। किन्तु सामान्यत: हमारा जीवन इन असत् और सत् की भावधाराओं के बीच में चलता है। कभी असत् की तरंग उठती है तो कभी सत् की तरंग उठती है। जैसे-जैसे हमारी भाव-क्रिया प्रबल होती है, जैसे-जैसे हमारा वर्तमान में रहने का अभ्यास शक्तिशाली बनता है, जैसे-जैसे हम प्रेक्षा के प्रति सावधान और जागरूक होते हैं और निरन्तर जागरूकता का अभ्यास करते हैं, वैसे-वैसे ही मस्तिष्क में उठने वाली अशुभ भाव की तरंगों का पता लगने लग जाता है कि अब अशुभ भाव की तरंग उठ रही है। उस समय तत्काल शुभ भाव की तरंग पैदा कर देते हैं। अनुप्रेक्षा शुरू कर देते हैं तो अशुभ भाव की तरंग दब जाती है, शांत हो जाती है।
___ अनुप्रेक्षा का प्रयोग बहुत महत्त्वपूर्ण है असत् से बचने के लिए। सारा जप का विकास इसी आधार पर हुआ है। अनुप्रेक्षा के सिद्धांत के आधार पर जप का विकास हुआ है। इष्ट का जप करो, मन्त्र का जप करो, क्योंकि शुभ भाव और शुभ विचार तुम्हारे मन में रहेगा तो अशुभ भाव को जागने का मौका नहीं मिलेगा। इसीलिए मन्त्र का आलम्बन लिया गया। कुछ लोग अध्यात्म साधना के क्षेत्र में मन्त्र की उपयोगिता नहीं मानते। पर हमारा विश्वास है कि मंत्र की भी बहुत बड़ी उपयोगिता है, उसे नकारा नहीं जा सकता, अस्वीकार नहीं किया या सकता, क्योंकि हम सीधे वीतराग तो बन नहीं सकते। सीधे छलांग वाली बात बहुत कम घटित होती है। कोई व्यक्ति ऐसा हो सकता है कि सीधी छलांग लगा सकता है। कोई-कोई ऐसा हो सकता है कि छत पर से सीधे नीचे छलांग लगा सकता है। पर हर कोई लगाने लग जाए तो सीढ़ियों की जरूरत क्या है ? फिर सीढ़ियां लगानी निरर्थक है। पर सब छलांगे लगाने लग जाएंगे तो शायद हॉस्पीटल में स्थान भी खाली नहीं मिलेगा। बड़ी मुसीबत पैदा हो जाएगी। छलांग की बात सार्वजनिक बात नहीं हो सकती। कदाचित् हो सकती है, अपवादस्वरूप हो सकती है। सीधे वीतराग की भूमिका में चले जाने की बात एक छलांग की बात है। हमें सीढ़ियों के सहारे चलना पड़ेगा। आदमी सीढ़ी के सहारे चढ़ेगा, ऊपर पहुंचेगा। सीढ़ियों में दोनों बातें होती हैं। एक ही सीढ़ी बनी हुई है। ऐसा नहीं होता कि ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां अलग बनती हैं और नीचे आ जाने के लिए सीढ़ियां अलग बनती हैं। उसी सीढ़ी से ऊपर चढ़ा जा सकता है और उसी सीढ़ी से नीचे आया जा सकता है और उसी भावधारा से नीचे उतरा जा सकता है।
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