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________________ भय की प्रतिक्रिया २४१ के लिए कितना स्राव करना है। पूरी व्यवस्था बनी हुई है। ___ आदमी व्यवस्थित खाता है, संतुलित भोजन करता है तो बुढ़ापा दूर चला जाता है। यदि संतुलित भोजन नहीं करता है तो बुढ़ापा निकट से निकट आता चला जाता है। जिसको निमन्त्रण दिया जाए वह तो आएगा ही। चिकित्साशास्त्री संत ने बहुत ही सुन्दर समाधान दिया कि भूलें और भ्रांतियां बुढ़ापे को लाती हैं। जो उन्हें छोड़ता है वह सदा युवा बना रहता है, स्वस्थ बना रहता है। सौ वर्ष की उम्र हो जाने पर भी वह स्वस्थ और युवा बना रहता है। भय की तीसरी प्रक्रिया है-मरण। डरने वाला व्यक्ति स्वाभाविक मौत से नहीं मरता, आत्मघात करके मरता है। स्वाभाविक मौत सहज ही आती है, बुलाई नहीं जाती। यह हो सकता है कि किसी व्यक्ति का जीवन कम वर्ष का हो और किसी व्यक्ति का जीवन अधिक वर्ष का हो, किन्तु स्वाभाविक ढंग से मरेगा तो अपनी मौत करेगा। किन्तु भय से मरने वाला व्यक्ति अपनी मौत से कभी नहीं मरता। वह आत्मघात करके मरता है। आत्महत्या करने वाले का पता लग जाता है कि उसने आत्महत्या की है। सौ में से दो-चार व्यक्ति आत्महत्या करने वाले होते हैं। किन्तु आत्मघात करने वाले अधिक होते हैं, सौ में से पचानवे व्यक्ति । पचानवे व्यक्ति डरते हैं और वे आत्मघात करते हैं, बेमौत मरते हैं। वे डरते हैं कि मौत आ न जाए। वे डरते हैं इसलिए मौत जल्दी आ जाती है। जिसे टालने की बात करते हैं और डरते हैं, वह टलता नहीं, शीघ्र आ जाता है। यह एक तर्क है। इसे समझना चाहिए। यह बहुत सरल गणित है। इसे भूलना नहीं चाहिए। एक आदमी ने पूछा-दो और दो कितने होते हैं ? एक ने कहा-चार, दूसरे ने कहा-बाईस और तीसरे ने कहा-कभी चार और कभी बाईस । तीन उत्तर हो गए। तीसरे व्यक्ति को नौकरी मिल गई। प्रश्न सरल था, पर तीनों के तीन उत्तर थे। दो उत्तर एकान्तिक थे। वे व्यवहार्य नहीं थे। तीसरे का उत्तर अनेकांतिक था। वह व्यवहार्य था। उसका उत्तर पूर्ण था, अधूरा नहीं। जीवन का गणित बहुत सीधा-सादा है, पर वह बहुत टेढ़ा बन गया है। मेरी कविता की दो पंक्तियां हैं ‘सहज सरल जीवन की पोथी, बड़ा जटिल अनुवाद हो गया।' जीवन की पुस्तक बहुत सहज-सरल है, परन्तु उसका अनुवाद इतना जटिल हो गया है कि उसे समझना कठिन हो गया। बहुत बार ऐसा होता है कि मूल ग्रंथ तो सरल होता है, किन्तु जो व्यक्ति उसका अनुवाद प्रस्तुत करते माहिती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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