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________________ भय की परिस्थिति २३७ रोगों को मिटाने की अचूक दवा है। आप औषधि का सेवन करें और नीरोगता से साधना में और तीव्रता लाएं। मुनि ने चिकित्सा को सर्वथा अस्वीकार कर दिया। वैद्य ने आग्रह करते हुए कहा-आप अस्वीकार न करें। मैं सेवाभावना से आपकी चिकित्सा करना चाहता हूं। औषधि-सेवन में आपको कोई कष्ट नहीं होगा। उन कीमती और अचूक औषधियों से आप शीघ्र ही स्वस्थ हो जाएंगे। आग्रह करता रहा वैद्य और अस्वीकार करते रहे मुनि। बहुत समय बीत गया। मुनि बोले-'तुम मेरी क्या चिकित्सा करोगे ? कहां है ऐसी औषधि तुम्हारे पास जो मेरे पास है ?' मुनि ने अंगुलि अपने मुंह में डाली। थूक को अपने शरीर से झरते हुए कुष्ट रोग पर चुपड़ा और वैद्य ने फटी आंखों से देखा कि मुनि का सारा शरीर कंचनमय बन गया है। उसके आश्चर्य का आर-पार नहीं रहा। वह मुनि के सौन्दर्य को देखता ही रह गया। मुनि बोले-“तुम क्या चिकित्सा करोगे ? कहां है तुम्हारे पास ऐसी औषधियां जो मेरे पास हैं, मेरे शरीर में हैं ? साधना और तपस्या के द्वारा अनेक लब्धियां मुझे स्वतः प्राप्त हैं। उनमें पांच ये हैं-जल्लौषधि आमौषधि क्ष्वेलौषधि, स्वौषधि, स्वेदौषधि । साधना करते-करते ये शक्तियां जाग जाती हैं। इनमें इतनी बड़ी शक्ति होती है कि बाहरी औषधियां इनके समक्ष व्यर्थ हो जाती हैं। श्लेष्म का थोड़ा-सा भी स्पर्श होता है और शरीर स्वर्णमय बन जाता है। उस लब्धि-सम्पन्न व्यक्ति के पसीने से छूकर जो हवा जाती है और दूसरे के शरीर का स्पर्श करती है तो वह व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है, बीमारी मिट जाती है। ऐसी स्थिति में तुम मुझे क्या दवा दोगे ? तुमने आकर साधना में विघ्न डाला है। मैं तो साधना में था। मुझे बीमारी का भान ही नहीं था। तुमने आकर अहंकार दिखाया कि मेरी दवाएं अचूक हैं। देख लिया तुमने ?" वैद्य बेचारा निरुत्तर था वह क्या बोलता ? चरणों में गिरकर बोला-'मुनिवर ! मैने बड़ा अपराध किया है। आप क्षमा करें।' भय की छठी परिस्थिति है-मरण भय। आदमी बीमारी से नहीं मरता आदमी मरता है डर से। किसी को कह दिया जाए कि तुम्हारे भीतर केन्सर पल रहा है। यह सुनते ही वह मरना शुरू कर देता है। अगर न मरे तो संभव है केन्सर भी उतना कष्ट न दे। किसी को कह दिया जाए कि तुम हृदय-रोग से ग्रस्त हो तो वह उसी क्षण में तिल-तिल कर मरना प्रारंभ कर देता है। आदमी डर से ही मरता है, मृत्यु से नहीं। ___ एक भोला आदमी था। दांत बंधे हुए थे। रात को सोते समय दांतों को एक कटोरे में रख दिया। उसमें पानी भरा हुआ था। एक बच्चा कहीं से आया और दांतों को खिलौने समझ ले भागा । वह आदमी सुबह उठा। पास में दांतों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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