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________________ २३० कैसे सोचें ? है। यह भय की पहली परिस्थिति है। आदमी को आदमी से नहीं डरना चाहिए क्योंकि दोनों समानधर्मा हैं, दोनों आत्मवान हैं, दोनों एक ही जाति के हैं, दोनों चेतनावान् हैं, दोनों समझदार हैं, दोनों बुद्धिमान हैं। आदमी को आदमी से नहीं डरना चाहिए, यह एक तथ्य है, किन्तु प्रत्येक आदमी एक व्यूह से घिरा हुआ है। आदमी में लोभ है, इसलिए वह भय पैदा करता है। यदि आदमी में लोभ नहीं होता तो आदमी से डरने की जरूरत नहीं होती। भय का मूल सर्जक है-लोभ । कुछ आवेग हैं, कुछ उप-आवेग हैं। लोभ एक आवेग है और भय उसका उप-आवेग है। लोभ है तो भय है और लोभ नहीं है तो भय नहीं है। लोभी आदमी अपना स्वार्थ साधना चाहता है और जब व्यक्तिगत स्वार्थ की बात आती है तब दूसरों के लिए भय पैदा करता है। यह कभी नहीं होता कि स्वार्थ-सिद्धि हो और दूसरों के लिए भय की सृष्टि न हो। यह असंभव बात है। जहां-जहां स्वार्थ-साधना की बात होती है वहां-वहां भय की सृष्टि होती ही है। आक्रमण किसलिए होता है ? साम्राज्यवादी मनोवृत्ति किसलिए होती है ? चोरी, डकैती, लूट-खसोट, विश्वासघात और धोखा धड़ी क्यों होती है ? जितने भी ये असद् आचरण और व्यवहार हैं, ये सारी लोभ के केन्द्र से निकलने वाली रश्मियां हैं। ये वे तरंगें हैं जो लोभ के महासागर में उछालें भरती रहती हैं और आकाश को चूमती रहती हैं। ये सारी उत्ताल तरंगें हैं। लोभ का महासमुद्र है, उसमें से ये उछलती हैं। जब तक लोभ है, तब तक स्वार्थ है और जब तक स्वार्थ है तब तक आदमी दूसरे आदमी के लिए खतरा और भय है। कभी खतरे से परे की बात नहीं सोची जा सकती, कभी भरोसा नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि इस दुनिया में कोई आदमी किसी का भरोसा नहीं करता। अपने बाप का भी भरोसा नहीं करता। भरोसा अपने बेटे का भी नहीं करता और पत्नी का भी नहीं करता। सर्वथा संदेह की स्थिति है। कोई किसी का भरोसा नहीं करता। हर व्यक्ति के पास अपने रहस्य हैं, मंत्र हैं, गुप्त योजनाएं हैं, क्रिया-कलाप और व्यवहार हैं। वह इस अंतिम बात को कहीं बताना नहीं चाहता, उद्घाटित करना नहीं चाहता। औरों की बात ही क्या, गुरु भी अन्तिम गुर किसी को नहीं बताता, अपने आप ही रखना चाहता है। यही कारण है कि भारत की अनेक विद्याएं लुप्त हो गईं। गुरु अपने प्रिय शिष्य को भी रहस्य नहीं बताते और गुरु की मृत्यु के साथ वह विद्या भी लुप्त हो जाती है। इसका कारण है कि कोई किसी पर भरोसा नहीं करता। बात भी सही है कि भरोसा किया कैसे जाए ? एक मंत्रवादी कहीं जा रहा था। रास्ते में उसने देखा कि एक चूहा तड़प रहा है। मंत्रवादी का दिल पिघला। उसने उसे शेर बना दिया। कहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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