SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२४ कैसे सोचें ? हुआ था कि चेतन मन की प्रत्येक घटना सूक्ष्म शरीर में जाती है। उसका प्रकम्पन सूक्ष्म शरीर में होता है। सूक्ष्म शरीर दुनिया का बहुत बड़ा तंत्र है। इतना बड़ा तंत्र दुनिया में दूसरा है ही नहीं। संसार के सारे तंत्रों-राज्य तंत्र, समाज तंत्र, उद्योग तंत्र को तुला के एक पल्ले पर रखा जाए और सूक्ष्म शरीर के तंत्र को दूसरे पल्ले पर रखा जाए तो सूक्ष्म शरीर के तंत्र वाला पल्ला भारी होगा। वह इतना बड़ा तंत्र है कि जहां असंख्य वृत्तियों के असंख्य स्थान अलग-अलग बने हुए हैं। असंख्य-असंख्य वृत्तियां हैं और असंख्य-असंख्य स्थान हैं। एक विचार, एक चिन्तन और एक अध्यवसाय में असंख्य गुना तारतम्य होता है। इतना बड़ा तारतम्य इसलिए है कि सूक्ष्म स्पंदन का अपना पूरा तंत्र बन जाता है। कोई भी स्पंदन या प्रकंपन व्यर्थ नहीं जाता। उसके अंकन होते हैं। वे सारे अंकन भीतर पड़े रहते हैं। भीतर में यह इतना बड़ा कम्प्यूटर है कि वह प्रत्येक छोटे-बड़े स्पंदन का रिकार्ड कर लेता है और समय का परिपाक होने पर उसका फल भी प्रस्तुत कर देता है। उस सूक्ष्म शरीर में, कर्म-शरीर में सारे तंत्रों के बीच भय का भी एक पूरा तंत्र है। मोह के परमाणु उस पर अपना अधिकार जमाए हुए हैं। वे परमाणु उद्दीपनों के आधार पर उद्दीप्त होते हैं और यदि कोई उद्दीपन प्राप्त नहीं होता है तो अपने काल का परिपाक होते ही वे उद्दीप्त हो जाते हैं। वे इस बात की अपेक्षा नहीं रखते कि उद्दीपन मिले, तब ही उद्दीप्त होना है। वे उद्दीपनों के बिना भी अपना काम प्रारम्भ कर देते हैं। कर्म का तंत्र बड़ा दायित्वशील है। वह अपने दायित्व के प्रति इतना जागरूक है कि वह इस बात की अपेक्षा नहीं रखता कि उद्दीपक सामग्री मिली या नहीं मिली, वह तो अपना काम शुरू कर देता है। विपाक होते ही वह अपना काम प्रारम्भ कर देता है। भय प्रगट हो जाता है। कई बार आदमी को महसूस होता है कि वह शांत बैठा है, पर अचानक उदास हो जाता है। कोई परिस्थिति नहीं होती, पर आदमी हर्षित हो जाता है, हर्ष की तरंगें उठने लग जाती हैं। कोई अशुभ समाचार नहीं सुना, फिर भी आदमी का मन अचानक विषाद से भर जाता है। अकस्मात् क्रोध क्यों आ जाता है ? अकस्मात् भय क्यों उत्पन्न हो जाता है ? ऐसा अनुभव एक का नहीं प्रत्येक को कभी-कभी होता है और वह इसी भाषा में बोल भी पड़ता है-यह अकस्मात् क्यों हो गया ? कैसे हो गया ? ., यह सारा होता है भय के परमाणुओं की सक्रियता के कारण। यह सब से बड़ा स्रोत है, मूल स्रोत है। मूल स्रोतों का भी यह महास्रोत है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy