SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२२ कैसे सोचें ? हैं। जो स्वयं सत्त्वहीन और शक्तिशून्य होता है, उसका कोई सहयोग नहीं करता, उसके मन में सदा डर बना रहता है। भय की उत्पत्ति का पहला स्रोत है-सत्त्वहीनता, शक्ति-शून्यता। २. भय की मति जब बुद्धि में भय समा जाता है, जब आदमी मान लेता है कि भय है तब भय ही भय दिखता रहता है। एक मकान को 'भूतहा' घोषित कर दिया गया। लोगों ने मान लिया कि इस घर में भूत रहते हैं, यह भूतों का निवास-स्थान है। भूत किसी को दिखे या नहीं, पर मन पर भूत सवार हो जाता है। बुद्धि में भय जम जाता है। 'भूतहा' मकान को कोई खरीदना नहीं चाहता, भले फिर वह कितना ही सुन्दर हो, कितना ही सस्ता मिलता हो। इसका मूल कारण है कि आदमी में भय की बुद्धि निर्मित हो गई। जब एक बार ऐसा होता है तब भय पैदा होता ही रहता है। ३. भय का सतत चिंतन डर की बातें करना, डर के विषय में सोचते रहना, बार-बार भय उत्पन्न करने वाला साहित्य पढ़ना, उसी का श्रवण करना, उसी का मनन करना, उसी का निदिध्यासन करना-ये सारे भय की उत्पत्ति में सहायक बनते हैं। आज क्या होगा ? कल क्या होगा? बुढ़ापे में क्या होगा ? भय की इतनी तरंगें और धाराएं प्रसारित होती हैं कि भय के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता। भय का चिन्तन करने से भय पैदा होता है। ___ अनेक लोग ऐसे होते हैं जो भय की कहानियां सुनाने में बहुत रस लेते हैं। वे कहने लगते हैं-मेरे पिता ने एक रात चुडैल को देखा था। उसके पंजे पीछे की ओर मुड़े हुए थे। मेरे पिता ने एक दिन भूत को देखा, मेरे मित्र ने प्रेतात्मा से साक्षात्कार किया और यह भयंकर घटना घटी। ऐसी घटनाओं का अन्त ही नहीं आता। एक के बाद दूसरी घटना सुनाते चले जाते हैं, घटी हो या न घटी हो, यथार्थ हो या काल्पनिक हो। आख्यान या कहानी में कल्पना की जा सकती है। यह दोष नहीं माना जाता । भूत-प्रेत की घटनाएं सुनाने वाले सुना देते हैं, किन्तु सुनने वालों के लिए सोना हराम हो जाता है। रात भर करवटें बदलते रहते हैं, नींद आती ही नहीं। चारों ओर भूत ही भूत या प्रेत ही प्रेत दिखाई देने लगते हैं। सारा शरीर भय से कांप उठता है। कभी कुछ हुआ होगा या नहीं हुआ होगा, पर सुनने वाले के मन में सारे चित्र उभरते रहते हैं। भय की उत्पत्ति का तीसरा स्रोत है-भय का सतत चिन्तन करना, भय की बातें सुनना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy