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भय के स्रोत
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कि मैं अकेला ही हूं, साथी पीछे छूट गया है तो वह डरने लग जाता है। उसके पांव कांपने लग जाते हैं। अकेलापन भय को उद्दीपन करने वाली परिस्थिति
है।
ये भय को उद्दीप्त करने के कुछेक कारण हैं। ये उद्दीपन हैं, भय के मूल स्रोत नहीं हैं। हमें खोजना होगा कि भय के मूल स्रोत क्या हैं ?
भय के चार मूल स्रोत बतलाए हैं१. सत्त्वहीनता। ३. भय का सतत चिंतन ।
२. भय की मति। ४. भय के परमाणुओं का उत्तेजित होना। १. सत्त्वहीनता
___ व्यक्ति में पराक्रम नहीं है, बल नहीं है, शक्ति नहीं है, सत्त्व नहीं है। जब शक्ति, पराक्रम और सत्त्व का आभाव होता है तब अकारण ही भय पैदा होता है। सत्त्व अन्त:करण से संबद्ध पराक्रम है। जिस व्यक्ति को अपने अस्तित्व का निरन्तर बोध होता रहता है, जिस व्यक्ति में अपने अस्तित्व के प्रति ग्लानि या हीनता का अभाव नहीं है, वह चेतना सत्त्व-चेतना होती है। अपने अस्तित्व का बोध होते रहना, यह सत्त्व-चेतना है। जिसमें इसका अभाव होता है, वह दूसरों को देखते ही डर जाता है, दूसरों से प्रभावित हो जाता है। प्रभावित होना भी एक प्रकार का भय है। सत्त्व की कमी ही इसका कारण बनती है। स्वयं की दुर्बलता ही इसका कारण बनती है। इस दुनिया में शक्ति-अशक्ति, दुर्बलता-सबलता का नाटक होता रहता है। शक्तिहीन और दुर्बल व्यक्ति की कोई सहायता नहीं करता। शक्तिशाली की सहायता में अनामंत्रित लोग आ जाते हैं। एक संस्कृत कवि ने लिखा है-“सखा भवति मारुतः।"
जब दावानल सुलगता है, आग सारे जंगल को भस्मसात् करती है, तब हवा उसका सहयोग करती है। वायु की सहायता के बिना आग फैलती नहीं। आग को फैलाने में वायु सखा का काम करती है। प्रश्न है-सहयोग क्यों करती है ? आग और हवा में विरोध होना चाहिए, किन्तु आग को सहयोग देती है हवा, क्योंकि आग शक्तिशाली है, वह फैलने लगती है तब हवा अनामंत्रित ही उसे सहयोग देने आ जाती है और जब आग दुर्बल होती है तब हवा उसे बुझाने लग जाती है। जब दीप टिमटिमाने लगता है तब हवा का झोंका आता है और उसे बुझा डालता है। हवा आग प्रज्वलित करती है, हवा आग बुझाती है। दीप बेचारा दुर्बल था, हवा ने उसको बुझा दिया। दावानल शक्तिशाली था, हवा ने उसको सहयोग दिया और वह आग और अधिक भभक उठी।
विश्व का यह नियम है। सब शक्ति-सम्पन्न व्यक्ति का सहयोग करते
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