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________________ हृदय परिवर्तन का प्रशिक्षण १९३ साक्षात्कार करने की प्रक्रिया है। रंगों के ध्यान में हम सुझाव देते हैं-ज्योतिकेन्द्र पर श्वेत रंग का साक्षात्कार करें, आनन्द-केन्द्र पर हरे रंग का साक्षात्कार करें, विशुद्धि-केन्द्र पर नीले रंग का साक्षात्कार करें। आप सोच सकते हैं कि बन्द आंखों से रंगों का साक्षात्कार कैसे होगा? हमारी आस्था आंखों पर है। हमारी आस्था का नया आयाम खुलना चाहिए। आस्था का विस्तार होना चाहिए कि आंखों से देखना एक छोटी बात है। हमारी शक्ति बहुत अधिक है। हम आंखों के बिना भी देख सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं। इस समूचे आकाशमण्डल में रंग भरे हुए हैं। जितने रंग इस दुनिया में हैं, उन सारे रंगों के घटक परमाणु समूचे आकाशमण्डल में व्याप्त हैं। हम जब आंखें बंद कर गहरी तन्मयता और एकाग्रता के साथ अनुभव करना शुरू करते हैं तो हमें नाना प्रकार के रंग दिखाई देते हैं। आंखें बंद होने पर भी ऐसे चमकीले रंग दिखाई देते हैं, ऐसे सुन्दर और आकर्षक रंग दिखाई देते हैं कि जिनकी कल्पना आंखें कर ही नहीं सकतीं। वे सारे रंग हमारे साक्षात् होते हैं। . ___ दर्शन के द्वारा अनुद्घाटित पर्याय उद्घाटित होते हैं और आवृत पर्याय अनावृत होते हैं। तब ऐसा चक्र चलता है कि सारी घटनाएं सामने घटित होती चली जाती हैं। वस्तु-जगत् की घटनाएं और अन्तर-जगत् की घटनाएं-दोनों हमारे सामने साक्षात् होती चली जाती हैं। जो घटनाएं हमारे अन्तर-जगत् में घटित हो रही हैं, जिनका हमने कभी साक्षात्कार नहीं किया वे सारी घटनाएं आंखों को बंद करने के बाद, मन की एकाग्रता सधने के बाद अव्यक्त से व्यक्त होकर सामने मूर्त होती रहती हैं। वस्तु-जगत् की घटनाएं भी बंद आंखों के सामने नाचने लग जाती हैं। हम अनुभव करें कि हमारी चेतना इन्द्रियों से सिमटी हुई चेतना नहीं है। चेतना उतनी ही नहीं है जो इन्द्रियों के द्वारा उपलब्ध हो रही है। हमारी चेतना अनन्त है। उसका कहीं अन्त नहीं है। उसकी कोई सीमा नहीं है। अनन्त और असीम चेतना को सीमित कर आदमी अज्ञान पूर्ण जीवन जी रह है। यह प्रेक्षा-ध्यान इस अज्ञान के निरसन की प्रक्रिया है। अज्ञान के निरस्त होने पर चेतना को नया आयाम मिलता है और तब उसका विस्तार होता है। यह चेतना का विस्तार हमें उपाय से उपलब्ध होता है। प्रशिक्षण का तीसरा सूत्र है-अभ्यास । आस्था निर्मित हो गई, उपाय में जान लिया गया, पर यदि अभ्यास नहीं किया तो बात अधूरी रह जाएगी प्रशिक्षण के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात है कि उपाय को अभ्यास में लाना अभ्यास के द्वारा उसे पुष्ट करना। जो लोग अभ्यास नहीं करते वे पा नह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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