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कैसे सोचें ?
का निवास है। लक्ष्मी कल्याणकारी है, बुरी नहीं है। लक्ष्मी शक्ति, चैतन्य और आनन्द का प्रतीक है। जब लक्ष्मी नहीं होती है तो सारी शक्ति लुप्त हो जाती है, चैतन्य गायब हो जाता है और आनन्द तिरोहित हो जाता है। लक्ष्मी शक्ति, चैतन्य और आनन्द-इस त्रयी की प्रतीक है। लक्ष्मी हमारा इष्ट है। चाहे कोई भगवान् को लक्ष्मी माने, अरिहंत को लक्ष्मी माने, अपनी आत्मा को लक्ष्मी माने-ये सारी लक्ष्मियां हैं। दरिद्रता कभी इष्ट नहीं बन सकती। वह इस त्रिपदी से शून्य है।
लक्ष्मी और दरिद्रता-ये दो प्रतीक हैं संपादाओं के और विपदाओं के। लक्ष्मी संपदा की प्रतीक है और दरिद्रता आपदा की प्रतीक है। जितनी दैवी शक्तियां, आत्मिक अनुभूतियां और विशेषताएं हैं, उनका प्रतीक बना दिया लक्ष्मी को और जितनी विपत्तियां हैं, निषेधात्मक भाव हैं, बुरे विचार हैं उनका प्रतीक बना दिया दरिद्रता को।
एक पंडित राजा के पास गया। धन चाहता था। राजा को प्रभावित करने के लिए उसने एक युक्ति ढूंढ निकाली। राजा को देखते ही उसने नमस्कार किया और वह बोला-'महाराज ? मैं आपका भाई हूं और बहुत दूर से मिलने आया हूं।' राजा ने देखा। फटे-कपड़े, बुरा हाल । उसका चेहरा परिचित भी नहीं, जाना-पहचाना भी नहीं। राजा स्तब्ध और अवाक् रह गया। पंडित बोला-'आप बोलते क्यों नहीं ? क्या आपने मुझे नहीं पहचाना? . मैं आपका छोटा भाई हूं। बहुत दिनों बाद आया हूं।' राजा ने उसकी उदंडता को नजरअंदाज करते हुए कहा-बताओ, मेरे भाई कैसे हुए ? भाई हो और मैं न पहचानूं, यह कैसे हो सकता है। पंडित बोला-मैं असत्य नहीं कह रहा हूं। हूं तो आपका ही भाई। राजा ने पूछा-कैसे ! पंडित बोला-राजन् ! मेरी मां का नाम है आपदा और आपकी मां का नाम है संपदा। आपदा और संपदा-दोनों बहिनें हैं। इसलिए मैं आपकी मौसी को बेटा भाई हूं। अब तो पहचाना आपने?
'आपदा च मम माता, तव माता च संपदा। आपत्संपदे भगिन्यौ, तेनाहं बान्धवो नृप !।।'
आपदा और संपदा-ये दोनों सगी बहिने हैं। दोनों साथ रहती हैं। संभवत: शरीर का दांया-बांया भाग भी उन्हीं का प्रतीक है। दांया भाग लक्ष्मी का है, संपदा का है और बांया भाग दरिद्रता का है, विपदा का है।
आज सारी दुनिया में दो ही मार्ग हैं-दक्षिण मार्ग और वाम मार्ग। धर्म के क्षेत्र में भी दो ही मार्ग हैं-दक्षिणमार्गी और वाममार्गी। तांत्रिक वाममार्गी होते हैं और दूसरे धार्मिक दक्षिणमार्गी होते हैं। राजनीति के क्षेत्र में भी
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