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________________ कैसे सोचें ? भंयकर सर्दी में क्या करता होगा ? सम्राट् ने सुना। वह स्तंभित रह गया। वह वहां से चला। उसने सोचा-मेरे आदेश के अनुसार यदि अन्त:पुर जला दिया है तो महान् अनर्थ घटित हो जाएगा। उसकी गति में तीव्रता थी। रास्ते में अभय कुमार मिला। सम्राट ने पूछा-क्या आदेश का पालन कर दिया ? 'हां महाराज! आपके आदेश के प्रति मैं लापरवाही कैसे बरत सकता था ?' सम्राट् ने कहा-अभयकुमार ! अनर्थ कर डाला। अभयकुमार ने पूछा-कैसे ? सम्राट् ने सारी बात बताई। अभयकुमार बोला-महराज ! आप चिन्ता न करें। मैंने आग लगाई है, क्योंकि आपका आदेश था। किन्तु उस आग को महल तक पहुंचने में पूरा दिन लगेगा। एक व्यग्र चिन्तन के कारण कितनी बड़ी दुर्घटना घटित हो सकती है और आदमी कितना बड़ा अनर्थ कर सकता है, इस घटना से यह जाना जा सकता है। न जाने कितने साम्प्रदायिक सामाजिक विवाद इस व्यग्र दृष्टिकोण के कारण होते हैं। पत्नी एक बात कहती है, पति उसे समग्रता से नहीं सुन पाता। उस अधूरी बात से घर में महाभारत हो जाता है। भयानक स्थिति उत्पन्न हो जाती है। वह कहता है, मैंने अपने कानों से सुना। 'अरे, तुम्हारे कान कौन से भगवान् के कान आ गए ?' मैंने अपनी आंखों से देखा है।' 'अरे, तुम्हारी आंखें कौन सी भगवान् की आंखें आ गईं।' आदमी के कान और आंखें कितना धोखा देती हैं, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। अधूरी बात के आधार पर आदमी क्या-क्या नहीं कर लेता। व्यग्रता और आवेशशीलता के कारण बड़े-बड़े अनर्थ घटित होते हैं। सम्यक् और संतुलित चिंतन के लिए, विधायक दृष्टि के लिए सबसे पहली बात है, समग्रता के दृष्टिकोण का विकास । व्यक्ति को चाहिये कि वह कभी व्यग्रता की दृष्टि से न सोचे और पूरी जानकारी के बिना निर्णय न ले। ____एक बार चीन में सैनिकों की अनिवार्य भर्ती हो रही थी। एक व्यक्ति ने आकर माओत्से तुंग से कहा-'तुम्हारी टांग टूट गई है। अच्छा हुआ। तुम अनिवार्य सैनिक भर्ती से बच गए।' माओत्से तुंग ने कहा--'तुम कह सकते हो कि अच्छा हुआ। मैं यह नहीं कह सकता क्योंकि पुरा चित्र मेरे सामने नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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