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________________ कैसे सोचें (१) भयंकर सर्दी। सोते-सोते अचानक रानी के मुंह से ये शब्द निकल पड़े-'वह क्या करता होगा ?' सम्राट् जाग रहा था। उसने सुना। इन शब्दों ने उसके रोम-रोम में आग लगा दी। महारानी चेलना के चरित्र पर उसे गर्व था। उसने सोचा-जिस रानी पर मैं इतना अधिक विश्वास करता हूं, वह नींद में बड़बड़ा रही है-'वह क्या करता होगा?' हो न हो, यह किसी अन्य में आसक्त है। राजा का मन अत्यन्त संतप्त हो गया। उसके मन में रानी के प्रति अविश्वास उत्पन्न हो गया, घृणा पैदा हो गई।. प्रात:काल हुआ। सम्राट अत्यन्त खिन्न और उदासीन था। उसने अपने महामात्य अभयकुमार को बुलाकर कहा- 'मैं भगवान् महावीर को वंदन करने जा रहा हूं। तुम इस महल को जला देना, विलंब मत करना ।' । सम्राट का यह आदेश सुनकर अभयकुमार अवाक् रह गया। उसने सोचा-अन्त:पुर को जला देना, महारानी चेलना को किसी भी पूर्व सूचना के जलाकर खाक कर देना, यह कैसा आदेश ! एक ओर सम्राट् श्रेणिक, अपने पिता का आदेश है और दूसरी ओर महारानी चेलना, अपनी माता को अपने ही हाथों जीवित जला देने का जघन्यतम अपराध । वह जानता था कि सम्राट के आदेश का उल्लंघन क्या-क्या परिणाम ला सकता है। वह असमंजस में पड़ गया। सम्राट् श्रेणिक महावीर के समवसरण में पहुंचा। वंदना की। सतियों का प्रसंग चल रहा था। महावीर ने सहसा कहा-'महारानी चेलना सतियों में अग्रणी है। वह धर्मनिष्ठ और सत्यनिष्ठ है।' सम्राट ने सुना। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने महावीर से पूछा-भंते! एक उलझन है। आप कह रहे हैं महारानी चेलना महासती है। कल रात को सोते-सोते उसके मुंह से ये शब्द निकले-'वह क्या करता होगा?' क्या ये शब्द सतीत्व के प्रतीक हैं या उसके विपरीत ? ____ भगवान् बोले-'तू नहीं जानता, इन शब्दों का क्या तात्पर्य है। कल महारानी चेलना वंदना करने आई थी। वंदना कर वह जिस मार्ग से महलों में जा रही थी, बीच में वृक्ष के नीचे एक जैन मुनि ध्यान कर खड़े थे। वे निर्वस्त्र थे। भयंकर सर्दी थी। रानी वहां रुकी नहीं। वंदना कर चली गई। रात को वह सो रही थी। एक हाथ कंबल से बाहर रह गया। सर्दी के कारण वह जड़ हो गया, ठिठुर गया। वह मृतवत् हो गया। रानी ने हाथ उठाना चाहा, पर उठा नहीं। रानी ने सोचा-ओह ! हाथ थोड़े समय के लिए सर्दी में रह गया, उसकी यह दशा हो गई। वह मृतवत् हो गया, जड़ हो गया। धन्य हैं वे मुनि जो निर्वस्त्र होकर खुले में ध्यान करते हैं। वह बेचारा मुनि इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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