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________________ हृदय परिवर्तन के प्रयोग १५९ क्योंकि उसमें परिवर्तन नहीं होता। किन्तु चेतना बदलती रहती है, इतना जल्दी रूपांतरित हो जाता है कि नियम कार्यकर नहीं रहता। जितने नियम खोजे जाते हैं वे सारे व्यर्थ हो जाते हैं, क्योंकि चेतना एकरूप नहीं रहती। छोटे से छोटा प्राणी अपनी स्वतंत्र इच्छा का प्रयोग करता है, छलांग भरता है और बेचारा नियम कहीं का कहीं रह जाता है। अचेतन में छलांग नहीं होती, चेतन में छलांग होती है। अचेतन में इच्छा नहीं होती, चेतन में इच्छा होती है। यह इच्छा की स्वतंत्रता प्राणी का विशिष्ट लक्षण है। इसलिए चेतन प्राणियों के लिए नियमों को खोजना जटिलतम कार्य है। प्राणी को बदलना, जिसकी अपनी स्वतंत्र चेतना है, स्वतंत्र इच्छा है, बहुत जटिल कार्य है। प्राणियों में भी मनुष्य की चेतना को बदलना और भी अधिक जटिल है, क्यों कि उसके पास ऊह है, अपोह है, तर्क है, वितर्क है, बुद्धि है और चेतना के सारे व्यापार, सारे विकास विद्यमान हैं। उसको बदलना, सचमुच जटिल कार्य है। चेतना का परिवर्तन, मनुष्य की चेतना का परिवर्तन युक्ति को जाने बिना सम्भव ही नहीं है, क्योंकि वह परिवर्तन परिस्थिति का परिवर्तन नहीं है। आदमी परिस्थिति को बदलने की बात सोच सकता है, प्रयत्न कर सकता है, उपाय खोज सकता है और यह संभव भी हो जाता है, किन्तु उस मनुष्य की चेतना को बदलना जिसके साथ स्मृति जुड़ी हुई है, संस्कार जुड़े हुए हैं, दोष जुड़े हुए हैं, बहुत कठिन बात है। ये संस्कार दीर्घ कालीन हैं। सुदूर अतीत के संस्कार संक्रांत हो रहे हैं, आ रहे हैं। उनमें परिवर्तन करना सरल नहीं है। कुछ घटनाएं विचित्र होती हैं। उन पर सहसा विश्वास नहीं होता। हमने सुना एक साध्वी किसी अदृश्य छाया से ग्रस्त हो गई। उसे भयंकर मानसिक वेदना से गुजरना पड़ता। यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा। अनेक उपाय किए। मंत्र, जाप, इष्ट-स्मरण, आराधना के उपक्रम हुए। साध्वी के मुंह से आवाज आती-'हम बदला ले रहे हैं। इस जन्म से दो जन्म पूर्व इसने हमारा धन हजम कर डाला था। हमने इसके पास बन्धक के रूप में धन रखा था। जब हमने मांगा तब यह मुकर गया। हम बदला लेना चाहते थे, बदला ले रहे हैं। अभी कुछ दिन इसको और पीड़ित करेंगे। जब साध्वी कुछ स्वस्थ होती, वह छाया दूर होती, तब कहती-कोई किसी का धन न हड़पे, बन्धक रखी हुई वस्तु को हजम न करे। इसका परिणाम बहुत बुरा होता है।' कुछ महीनों तक साध्वी ने बहुत वेदना सही। उस छाया ने बहुत कष्ट दिया। एक बार छाया ने कहा-'हम साध्वी को मार डालते। हमारे बदले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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