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________________ हृदय परिवर्तन के सूत्र (२) १४३ का उपचार भी बतलाया गया है। कोरे दोष बतलाने से काम नहीं चलता। पांचों की चिकित्सा भी बतलाई गई है। पांच उपाय बतलाये गये हैं। पहला दोष है-काम । काम को कम करने का, काम को निरस्त करने का उपाय है-असंकल्प। संकल्प न करना काम को जीतने का उपाय है। अगस्त्यचूर्णि में एक बहुत महत्त्वपूर्ण श्लोक मिलता है 'काम ! जानामि ते रूपं, संकल्पात् किल जायसे । न त्वां संकल्पयिष्यामि, ततो मे न भविष्यसि ।।' 'काम ! मैं तेरा स्वरूप जानता हूं। तू संकल्प से पैदा होता है। मैं संकल्प नहीं करूंगा, मैं कल्पना नहीं करूंगा। तू पैदा ही नहीं होगा। बीज ही नहीं बोऊंगा, उगेगा ही नहीं।' काम को निरस्त करने का उपाय है-असंकल्प। दूसरा दोष है-क्रोध। क्रोध को निरस्त करने का उपाय है-क्षमा, सहिष्णुता का विकास। लड़ोगे तो क्रोध होगा। जो आदमी क्रोध से लड़ता है, क्रोध तो महाराक्षस है, महादैत्य है, जैसे लड़ोगे वैसे बढ़ता चला जायेगा। लड़ो मत। सहिष्णुता का विकास करो। निषेधात्मक मार्ग पर मत चलो, विधायक मार्ग को स्वीकार करो। सहिष्णुता का विकास करो, क्रोध निरस्त हो जायेगा। तीसरा दोष है-नि:श्वास लेना, छोटा श्वास लेना, ज्यादा श्वास को बाहर फेंकते रहना। इसका उपाय है-लघु आहार। बड़ा अटपटा लगेगा आपको। भला कम खाना और नि:श्वास को चिकित्सित करना, उसे निरस्त करना कैसे हो सकता है ? जो ज्यादा पेट भर खा लेते हैं वे हांफने लग जाते हैं। हांफने का अर्थ है-छोटे श्वास लेना। इस दोष को, बीमारी को मिटाने का उपाय है-लघु आहार। कम खाओ, श्वास बिलकुल संतुलित चलेगा। ज्यादा खाने वाला छोटा श्वास लेता है, कम खाने वाला लम्बा श्वास लेता है। छोटा श्वास लेने वाला शक्ति को खर्च कर देता है और लम्बा श्वास लेने वाला शक्ति का भंडार भर लेता है। नि:श्वास की बीमारी का इलाज है-लघु आहार। चौथा दोष है-प्रमाद। प्रमाद का इलाज है अभय। प्रमाद भय पैदा करता है। भय से प्रमाद बढ़ता है। उसका इलाज है-भयमुक्त होना। जो आदमी जागरूक है, जिसने सच्चाई को समझा है, उसके लिए भय की जरूरत क्या है ? यूनान का बादशाह एक दिन अपने वजीर से रुष्ट हो गया। राजा का रोष और राजा का तोष-दोनों ही बड़े खतरनाक होते हैं। राजा एक ऐसी अजीब वस्तु बन गई कि उसका राजी होना भी खतरनाक है और नाराज होना तो खतरनाक है ही। उससे दूर रहना सबसे अच्छा होता है। दूर रहने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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