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________________ १३६ कैसे सोचें ? है। निमित्त बदलेगा तो जिस निमित्त से चेतना की अवस्था बदली थी वह अवस्था भी बदल जाएगी, चेतना अपने आप में प्रतिष्ठित हो जायेगी। __ हमारा साध्य है चेतना का परिवर्तन और आन्तरिक निमित्तों का परिवर्तन। साधन होगा चंचलता का परिवर्तन। पहला साधन है-एकाग्रता, स्थिरता। यह सबसे पहला साधन होगा। प्रेक्षाध्यान का अभ्यास शुरू किया और यदि शरीर की उतनी ही चंचलता, वाणी की उतनी ही चंचलता और मन की उतनी ही चंचलता बनी रही, कोई भी परिवर्तन शुरू नहीं हुआ तो मान लेना चाहिए कि ध्यान की पकड़ हुई नहीं, ध्यान पकड़ में नहीं आया। परिवर्तन शुरू होना चाहिए। यह तो मैं नहीं कहता कि एक दिन में ही स्थिरता के बिन्दु तक पहुंच जाएं, पर कुछ न कुछ परिवर्तन शुरू हो जाना चाहिए। जैसे मन की चंचलता में परिवर्तन होता है वैसे ही वाणी की चंचलता में भी परिवर्तन होना चाहिए। बिना बोले जो बेचैनी आती थी, वह थोड़ी तो कम होनी चाहिए। बिना बोले उमस आती थी और जी में घबराहट होने लगती थी, उसमें थोड़ा बहुत तो परिवर्तन शुरू होना चाहिए। बिना बोले भी रहा जा सकता है। मुनि हो या गृहस्थ, चंचलता की बीमारी तो सबको सताती है। यह बड़ी भयंकर बीमारी, बड़ी दूर तक जाने वाली बीमारी है। यह साधु बन जाने मात्र से छूट जाने वाली बीमारी नहीं है और यह चंचलता की बीमारी तो आगे तक चले जाने पर भी छूट जाने वाली बीमारी नहीं है। थोड़ा बहुत परिवर्तन होना चाहिए। पहला साधन होगा चंचलता की कमी। परिवर्तन का दूसरा साधन होगा-प्रिय-अप्रिय संवेदनों में कमी करना। यह बहुत महत्त्वपूर्ण साधन है। यदि चीनी में भी उतना ही रस, नमक में भी उतना ही रस, खाने में भी उतना ही रस, नींद में भी उतना रस-ये सारे रस बने रहे, प्रिय-अप्रिय संवेदनों में परिवर्तन नहीं आया, लड़ाई में भी उतना ही रस, उत्तेजना में भी उतना ही रस-ये सारे रस बने रहे तो ध्यान का अभ्यास नीरस लगेगा, फीका लगेगा । खाना, पीना, सोना, लड़ना, झगड़ना-ये बड़े रसवान लगेंगे। ऐसा रस टपकेगा कि वैसा रस अन्यत्र दुर्लभ है। सारे रस बदलने चाहिए। हमारा दूसरा साधन होगा कि जो रसवान है उसमें नीरसता का अनुभव जागे और जो नीरस-नीरस सा लग रहा है उसमें रस का अनुभव जागे, रस की चेतना जागे। यह रस का परिवर्तन, आकर्षण का परिवर्तन बहुत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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