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कैसे सोचें ?
की दूरी पर गाड़ी पहुंच जानी चाहिए। कोई साधन नहीं है आने का। मेरे भाई ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया। बैलगाड़ी नहीं भेजी। किसका भाई? जाऊंगा और अलग हो जाऊंगा। दो चूल्हे जलेंगे। साथ नहीं रह सकता। मेरी इतनी बात भी नहीं मानी उसने। ध्यान नहीं दिया। और भी कुछ बातें थीं। बड़ा गरमा गया। घर पहुंचा तो मुंह लाल, आंखें तनी हुई। आंख में लाल डोरे पड़ रहे थे। भाई ने देखा, अरे यह क्या ? भाई सदा आता है तो बड़ा खुशहाल होता है, प्रेममग्न होता है, आज तो गुस्से से लाल हो रहा है। भाई ने प्रणाम किया, तब भी सामने नहीं देखा। भाई बोला-'भाई !' क्या हो गया ? बड़े भाई ने कहा-'तुमने मेरी बात पर कब ध्यान दिया ?' छोटा भाई बोला-'मैंने आपकी बात कभी टाली ही नहीं।' बड़े भाई ने कहा-'मैंने लिखा था कि बैलगाड़ी भेजनी है दस कोस की दूरी पर। तूने भेजी नहीं। क्या इतना निकम्मा हो गया ? इतना काम भी मेरा नहीं कर सका ?" छोटा भाई बोला-"कब लिखा था आपने ?" लाओ पत्र । भाई थोड़ा पढ़ा-लिखा था, बोला, देखो मैंने यह क्या लिखा है। छोटा भाई बोला-“मैं तो उस महाशय के पास गया था। अपने गांव में तो एक पढ़ने वाला है। उसने तो कुछ बताया ही नहीं। मैं क्या करता ?" दोनों गए उसके पास । पूछा-“तूने यह पत्र पढ़ा था?" उसने कहा-"हां मैंने पढ़ा था।" फिर पूछा-तूने बताया नहीं कि बैलगाड़ी भेजनी है। वह मौन रहा। क्या बताता, जानता ही नहीं था पढ़ना ।
ऐसी घटनाएं होती हैं। थोड़ा पढ़ा-लिखा आदमी भी अनपढ़ लोगों में अपने आपको बहुत बड़ा मानने लग जाता है। किन्तु आज की स्थितियां तो बहुत बदल गई हैं। आज सीखने का विकास हो गया। नाना दिशाओं में आदमी ने इतना विकास किया है कि जिसकी तुलना शायद बहुत लंबे अतीत से नहीं की जा सकती। मैं मानता हूं, परिस्थिति के कारण आदमी ने सीखने में बहुत विकास किया है। आदमी ने भाषा के अध्ययन से लेकर विविध चिंतनों की शाखाओं का विस्तार से अध्ययन किया और आज वह सीखने की दृष्टि से बहुत गतिशील बन गया है।
ये दोनों कोण मेरे सामने हैं। एक है परिस्थिति का कोण, दूसरा है आंतरिक चेतना का कोण। एक है ज्ञात मन का कोण और दूसरा है अज्ञात मन का कोण। हमारे सारे व्यवहार की व्याख्या के लिए हमें दोनों दृष्टियों का उपयोग करना होगा। ज्ञात मन का भी उपयोग करना है और अज्ञात मन का भी उपयोग करना है। इन दोनों का उपयोग करके ही हृदय-परिवर्तन के सूत्र को पकड़ सकते हैं।
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