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कैसे सोचें ?
गहरी छाया नहीं होती। आम बड़ा गहरा होता है। पत्ते बड़े होते हैं। क्या ये छोटे-छोटे नीम के पत्ते बेचारे इतनी गहरी छाया कर पाएंगे? देखो, कितनी गहरी छाया है। बड़ा अच्छा लगा। बड़ी प्रशंसा की। फिर बोला-मंत्री ! देखो, फल कितने अच्छे लग रहे हैं। कितने पके हुए ? कैसा रंग है ? आंखों को तृप्त करने वाला है यह।
मंत्री बोला-'महाराज ! क्यों व्याख्या करते हैं ? आपको मतलब ही नहीं है इससे। क्यों ध्यान देते हैं ? यह ध्यान जाना अच्छा नहीं है।'
राजा फिर बोला-'तुम तो बहुत अतिवादी हो गए। जो ज्यादा सयाने लोग होते हैं, बड़े खतरनाक होते हैं। बांध देते हैं, जकड़ देते हैं। कहीं भी स्वतंत्रता के लिए अवकाश नहीं रहने देते। आम मुझे नहीं खाना है। क्या मुझे इतनी स्वतंत्रता भी नहीं है कि आम की व्याख्या करूं? अच्छे को अच्छा बताऊं ? क्या इतना परतंत्र हो गया मैं ?'
राजा के भीतर में तरंग उठ रही है कि देखो, क्या हो गया ? आज जी भर कर आम खा लेता। पर ये सारे के सारे मनाही कर रहे हैं। पता नहीं क्या हो गया है इन्हें । मेरे भीतर से भी एक आवाज आ रही है कि आम नहीं खाना है। यह और संकट पैदा हो गया। बहुत सारे लोग कहते हैं, अन्तर की आवाज है, भीतर की आवाज है, आत्मा की आवाज है। कहां आत्मा की आवाज है। यह हमारे भीतर में डाली हुई आवाज है जो बाहर फूट पड़ती है। राजा बड़े द्वन्द्व का अनुभव कर रहा है। योग ऐसा बना। राजा बैठा है पालथी मारे। एक आम टूटा और सीधा राजा की गोद में आकर पड़ा। राजा ने उठाया, उठा कर देखने लगा। मंत्री ने हाथ पकड़ा-'महाराज ! आप क्या कर रहे हैं ?' .
राजा बोला-'अरे, खा थोड़े ही रहा हूं? मैंने तो इसे बुलाया नहीं था। अकस्मात् यह डाल से टूटा और मेरी गोद में आ गिरा। मैंने इसे नहीं तोड़ा है। मैंने कुछ भी नहीं किया। तुम साक्षी हो। मैं उठा नहीं। मैंने आम तुड़वाया नहीं, पर अपने आप टूट कर मेरी गोद में पड़ा है। तुम्हारी गोद में तो नहीं गिरा। तुम्हारी गोद में गिर जाना चाहिए था इसे। तुम्हारे मन में आम की भावना है, तुम्हारी गोद में नहीं गिरा। मुझे नहीं खाना है मेरी गोद में गिरा। तुम इस नियम को नहीं जानते, जो आदमी चाहता है उससे हर वस्तु दूर भागती है, जो नहीं चाहता उसके पास वह स्वयं आ जाती है। यह तो दुनिया का नियम है। मैंने तो इस सार्वभौम नियम का पालन किया है। मैंने चाहा नहीं पर यह आम अपने-आप टूटकर मेरी गोद में आ गिरा। नहीं खाऊं, पर इसे देख भी नहीं सकता ? सूंघ भी नहीं सकता? कितना मोहक
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