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________________ १०० कैसे सोचें ? प्रतिक्रिया दिखला देता है। कमजोर आदमी प्रतिक्रिया-विरति का अभ्यास नहीं कर सकता। प्रतिक्रिया से मुक्त होना बहुत बड़ी साधना है। प्रतिक्रिया के संस्कार पीढ़ियों से चले आ रहे हैं। वे रक्तगत हो गए हैं। उस रक्त-परम्परा को बदल देना कोई छोटी बात नहीं, बहुत बड़ी बात है। आप जो प्रतिक्रिया कर रहे हैं, उसमें आपका ही दोष नहीं है, वह तो रक्तगत दोष है जो आपको मिला है, अपने पिता से, अपनी माता से। वह वंशगत संस्कार है। ___एक बहुत तेज तर्रार बच्चा था। उसकी मां ने मुझे कहा-बच्चा बड़ा शैतान है। गुस्सैल है। मैंने पूछ लिया, गुस्सा तो तुम्हें भी आता होगा ? वह बोली, हां, मुझे भी आता है। मैंने कहा-तुझे आता है तो तेरे बच्चे को क्यों नहीं आएगा ? तूने सिखाया है। सिखाया ही नहीं, तूने रक्त दिया है। यह तो रक्तगत संस्कार है। या तो मां की खराबी है या पिता की खराबी है, जिन्होंने अपने संस्कार दिए हैं। संस्कार ही नहीं, अपने अवयव दिए हैं। डॉक्टर भी पूछता है, क्या यह बीमारी आपके परिवार में किसी को है ? यह वंशानुक्रम की बात हर क्षेत्र में पूछी जाती है। हम लोग भी किसी को दीक्षित करते हैं तो यह देखते हैं कि इसके पीछे वंश-परम्परा कैसी है। अपने वंश से क्या-क्या विशेषताएं या खामियां लाये हैं। वंशानुक्रम विवाह करने वाला भी देखता है। प्रतिक्रिया करना केवल आपका ही दोष नहीं है, यह अनुदान है माता-पिता का। इस बात को बदल देना, रक्तगत संस्कार को बदल देना, इतनी जटिल आदत को बदल देना, सरल बात नहीं है। यह तभी बदला जा सकता है जब कोई सामने पुष्ट आलम्बन हो। ऐसा मजबूत सहारा मिल जाए तो आदमी बदल सकता है। यदि सहारा न मिले तो उसके बिना कभी बहुत बड़े भवन को खड़ा नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार प्रतिक्रिया से बचने के लिए बड़े आलम्बनों की जरूरत है। मैंने कुछ आलम्बनों की चर्चा की है। सैद्धांतिक आलम्बनों की चर्चा की है, शाब्दिक आलम्बनों की चर्चा की है, प्रायोगिक आलम्बनों की चर्चा करने की आवश्यकता नहीं लगती। आप स्वयं कर रहे हैं। सामने क्रोध का प्रसंग आया, दीर्घश्वास का प्रयोग शुरू कर दिया। आपको ज्यादा दिमाग पर तनाव देने की आवश्यकता नहीं होती। आज अपना श्वास देखना शुरू कर दीजिए, अपने आप स्थिति टल जाएगी। वह तो क्रोध कर रहा है, आपने अपने नथुनों के भीतर चित्त केन्द्रित किया, आते-जाते श्वास को देखना शुरू किया-श्वास भीतर आ रहा है, जा रहा है, तो क्रोध तो निकम्मा ही चला गया उसका। उसका क्रोध सार्थक तब होता जब आप में क्रोध जाग जाता। एक आदमी क्रोध करे और दूसरे को क्रोध न जागे तो उसे विफलता www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003094
Book TitleKaise Soche
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size12 MB
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