SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्धमान : परीषहों के घेरे में अनार्य प्रदेश में विहार क्यों ? भगवान् महावीर का साधना-काल चल रहा था । साधना करते-करते उनके मानस में एक संकल्प जागा । उन्होंने बंगाल प्रान्त के उस भाग की ओर प्रस्थान कर दिया, जहां अशिष्ट और जंगली आदिवासी लोग रहते थे। प्रश्न पैदा हुआ - भगवान् वहां क्यों गए? हमारे पुराने व्याख्याकार समाधान देते हैं— कर्मों की बहुत निर्जरा करनी थी इसलिए महावीर ने कष्टों को झेलने के लिए अनार्य प्रदेश में विहार किया । यह एक समाधान है, एक दृष्टिकोण है । जो भाष्यकार और व्याख्याकार होता है, उसका अपना दृष्टिकोण भी उसके साथ जुड़ता है। यह एक उद्देश्य हो सकता है किन्तु एक ही उद्देश्य हो, यह नियम नहीं बनाया जा सकता था। इसके साथ और बातें भी खोजी जा सकती हैं। कर्म की निर्जरा के और बहुत स्थान हो सकते थे इसके लिए बहुत कुछ किया जा सकता था। उधर जाने का दूसरा उद्देश्य भी हो सकता है । यह क्यों न माना जाए - महावीर के मन में एक संकल्प जागा, उन्होंने प्रयोग किया— जो लोग असभ्य हैं, उन्हें ध्यान के द्वारा बदला जाए । बदलने में महावीर का बहुत विश्वास था । ध्यान एक प्रयोग है बदलने का । संभव है -भगवान् महावीर के मन में दूसरों को बदलने का संकल्प जागा हो। उस समय की घटनाओं को देखने से इस संभावना को बल मिलता है । 1 एक संभावना का आधार भगवान् बुद्ध के समय की घटना है। एक राजा बहुत क्रूर था। किसी व्यक्ति ने बुद्ध के प्रमुख शिष्य से आकर कहा -- महाराज ! अमुक राजा बहुत क्रूर है । उसे आज तक कोई नहीं बदल पाया। यदि आप चाहें तो उसे बदल सकते हैं । आनन्द ने उसके अनुरोध को स्वीकार कर लिया। उन्होंने नगर के बाहर उद्यान में खड़े-खड़े ध्यान प्रारम्भ कर दिया। पहले पूर्व दिशाभिमुख होकर ध्यान किया। उसके बाद पश्चिम दिशा में, फिर उत्तर और दक्षिण दिशा में ध्यान किया। नगर के चारों ओर ध्यान करने का परिणाम हुआ— राजा का हृदय बदल गया, राजा कोमल और सद् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy