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________________ वर्धमान : परीषहों के घेरे में व्यवहार से परिपूर्ण बन गया। उस समय ऐसे प्रयोग चलते थे । क्रूर और अशिष्ट व्यक्तियों को बदलने की एक पद्धति रही है। हो सकता है— भगवान् महावीर के मन में भी यही भावना जागी हो । भगवान् महावीर ने सोचा होगा--मेरे कल्याण के साथ-साथ उनका भी कल्याण हो जाए। अनार्य देशों में जाने का यह भी एक कारण हो सकता है और यह कारण बहुत संगत प्रतीत होता है। निःशस्त्र और अकेले ___महावीर यह जानते थे—वे लोग असभ्य हैं, अशिष्ट हैं। उन लोगों के बीच अकेले जाना कोई हंसी-खेल नहीं था। महावीर के अलावा दूसरे लोग भी वहां जाते थे। जैसे आजकल पहाड़ी क्षेत्रों में ईसाई लोग अपना कार्य करने के लिए जाते हैं वैसे ही अन्य धर्मों को मानने वाले भी उस समय वहां जाते थे, उन्हें समझते थे। उस संथाल परगना क्षेत्र में दूसरे धर्म के संन्यासी गए थे पर वे अकेले नहीं गए । वे साथ में मिलकर गए, हाथ में लाठियां लेकर गए क्योंकि वहां के कुत्ते बड़े खूखार थे। एक उद्देश्य था—लोगों को अपनी-अपनी बात समझाना । भगवान् महावीर का जाना कुछ अलग प्रकार का था। वे अकेले थे, नि:शस्त्र थे। उनका अतीत भी इसी प्रकार की घटना से संवलित था। अतीत का प्रसंग जब भगवान् महावीर त्रिपृष्ठ के जीव में थे तब उन्होंने सिंह का वध किया। उस समय महावीर रथ में बैठकर शिकार करने गए और जंगल में जाकर रथ से नीचे उतर गए। उन्होंने सैनिकों से पूछा—सिंह पैदल चल रहा है या वाहन पर? पैदल चल रहा है। उसके पास कौन-सा हथियार है? कोई शस्त्र नहीं है। मैं भी शस्त्र नहीं रखूगा। महाराज ! यह आप क्या कर रहे हैं? निहत्थे व्यक्ति पर शस्त्र प्रयोग न्यायोचित नहीं है। . उन्होंने फिर पूछा--सिंह का परिवार कितना है? महाराज ! वह अकेला है। उसके साथ कोई नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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