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वर्धमान : निद्रा संयम
के अनेक प्रयोग किए। जो व्यक्ति अच्छा कायोत्सर्ग करना जानता है वह नींद की पूर्ति कर सकता है। अच्छे ध्यान से भी नींद की पूर्ति हो सकती है। यह भी माना जाता है-जब शरीर में लाल रंग ज्यादा होता है, नीला रंग कम हो जाता है अथवा नीला रंग ज्यादा और लाल रंग कम हो जाता है तब नींद का संतुलन गड़बड़ा जाता है । यदि दोनों रंगों का संतुलन बना रहे-लाल रंग और नीला रंग संतुलित रहे तो नींद का संतुलन बना रहता है। इसका संतुलन नींद को असंतुलित बना देता है।
वर्तमान युग नींद की बीमारी से ग्रस्त है। नींद की बीमारी वालों के लिए महावीर का यह दर्शन बहुत उपयोगी हो सकता है। प्रेक्षाध्यान शिविर में तपामंडी का एक वकील भाग ले रहा था। उसका चेहरा निस्तेज और मुरझाया हआ लग रहा था। उसने दस दिन तक कायोत्सर्ग का सघन अभ्यास किया। शिविर की सम्पन्नता पर अपने अनुभव सुनाते हुए उसने कहा-मैं बाईस वर्ष से अनिद्रा की बीमारी भुगत रहा था। नींद की गोलियां खाने पर भी अच्छी नींद नहीं आती थी। मझे कोई स्थायी समाधान नहीं मिला। लेकिन आज मुझे इस बीमारी का अचूक समाधान उपलब्ध हो गया है। आकर्षण की दिशा बदलें
कायोत्सर्ग नींद की बीमारी का बहुत बड़ा समाधान है । श्वास प्रेक्षा और शरीर प्रेक्षा भी उसका एक समाधान है। नीले रंग और लाल रंग के संतुलन का प्रयोग भी नींद की समस्या से मुक्ति का सशक्त उपाय है। यदि जागरूकता का सूत्र हाथ में आ जाए तो निद्राजन्य बीमारियों की समाप्ति का सूत्र उपलब्ध हो जाए। महावीर जैसे जागरूक तीर्थंकर को जानने-समझने वाले व्यक्ति जागरूकता के सूत्र को न अपनाएं, यह आश्चर्य की बात है। हम आचार्यश्री तुलसी के जीवन से भी जागरूकता का पाठ पढ़ सकते हैं। आचार्यश्री का आहार, नींद और आसन पर जो नियन्त्रण है, वह सचमुच अनुकरणीय है। यदि नींद के प्रति आकर्षण कम हो जाए, आकर्षण की दिशा बदल जाए, तो निद्रा संयम की दिशा में प्रस्थान संभव बन सकता है। जब तक स्वाध्याय, ध्यान, आत्मचिन्तन आदि के प्रति आकर्षण नहीं होगा तब तक दिशा नहीं बदलेगी। आज जरूरत है दिशा बदलने की । यदि हमें निद्रा के प्रति जागरूक होना है तो आकर्षण की दिशा को बदलना होगा। आकर्षण की दिशा को बदलना ही जागरूकता है। दिशा परिवर्तन का अर्थ है-निद्रा संयम, निन्द्राविजय की दिशा में प्रस्थान।
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